Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

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Class 6 Hindi Bal Ram Katha Chapter 4 Question Answers Summary राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 4

प्रश्न 1.
महामंत्री सुमंत्र असहज क्यों थे?
उत्तर:
राम के राज्याभिषेक का इतना बड़ा आयोजन हो रहा था, परन्तु महाराज कल शाम से दिखाई नहीं दे रहे थे। उनका मन शंकित हो रहा था। इस कारण वे असहज लग रहे थे।

प्रश्न 2.
महाराज के बारे में सुमंत्र के पूछने पर कैकेयी ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
कैकेयी का कहना था कि चिंता की कोई बात नहीं है। महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रातभर जागे हैं। वे बाहर निकलने से पूर्व राम से मिलना चाहते हैं। आप उन्हें बुला लाइए।

प्रश्न 3.
किसी के कुछ न बोलने पर राम के पूछने पर कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर:
कैकेयी ने राम से कहा कि महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर माँगे जिनसे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र-सम्मत नहीं है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो।

प्रश्न 4.
कैकेयी की बात को सुनकर राम की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
राम ने संयत होकर कैकेयी की बात को सुनकर कहा-“पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।”

प्रश्न 5.
राम ने कौशल्या को कैसे समझाया?
उत्तर:
राम ने कौशल्या से कहा-“माता, यह राजाज्ञा नहीं बल्कि एक पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लघंन मेरी शक्ति से परे है।” कौशल्या भी जब साथ चलने के लिए बोलीं तो उन्होंने कहा-“पिता जी को इस समय आपकी सेवा की आवश्यकता है। अतः आप यहीं रहकर पिता जी की सेवा करें।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

प्रश्न 6.
राम के वन-गमन को लेकर लक्ष्मण का क्या विचार था?
उत्तर:
राम के इस प्रकार वन जाने से लक्ष्मण असमहत थे। वे इसे कायरों का जीवन मानते थे। लक्ष्मण ने राम से कहा- “आप बाहुबल से अयोध्या का सिंहासन लें, देखता हूँ कौन विरोध करता है।”

प्रश्न 7.
राम ने सीता को अयोध्या में ही रहने को कहा। सीता ने क्या तर्क देकर राम की बात का खंडन किया?
उत्तर:
सीता ने राम से कहा कि मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह सदा आपके साथ रहूँ। राम को सीता की बात माननी पड़ी।

प्रश्न 8.
राम के वन-गमन का समाचार सुनकर नगरवासियों की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
नगरवासी दशरथ और कैकेयी को धिक्कार रहे थे। वे लोग बहुत ही उदास थे। सड़कें उनके आँसुओं से गीली हो गई थीं। वे नहीं चाहते थे कि राम और सीता वन को जाएं।

प्रश्न 9.
राम जब आशीर्वाद लेने अपने पिता के पास गए तो उन्होंने राम से क्या कहा?
उत्तर:
दशरथ ने राम से कहा-“पुत्र, मेरी मति मारी गई। मैं वचनबद्ध हूँ, परन्तु तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। तुम मुझे बंदी बना लो और राज-काज संभालो। यह सिंहासन केवल तुम्हारा है।”

प्रश्न 10.
“कि तुम मुझे बंदी बनाकर राज संभालो”, पिता के इन वचनों को सुनकर राम की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
पिता के इन वचनों ने राम को झकझोर कर रख दिया। वे बहुत दुःखी थे। उन्होंने नीति का साथ नहीं छोड़ा। वे बोले-आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा कहने के लिए विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है।

प्रश्न 11.
राम के वन चले जाने पर दशरथ की कैसी दशा हो गई?
उत्तर:
राम के वन चले जाने पर दशरथ की दशा और बिगड़ गई। राम के वन जाने के छह दिन बाद ही दशरथ का देहांत हो गया।

Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 4 राम का वन-गमन

Bal Ram Katha Class 6 Chapter 4 Summary

कोप-भवन के घटनाक्रम की किसी को जानकारी नहीं थी। सब लोग राम के राज्याभिषेक की तैयारी में लगे थे। महामंत्री सुमंत्र कुछ असहज थे। वे महर्षि वशिष्ठ के पास आए और महाराज के बारे में पूछा । महाराज को पिछली शाम से किसी ने नहीं देखा था। वे इसको आयोजन की व्यस्तता समझ रहे थे। सुमंत्र तत्काल राजभवन पहुंचे। कैकेयी के महल की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उनको एक अनजान-सा भय लग रहा था। सुमंत्र ने देखा कि महाराज कैकेयी के महल में दीन-हीन दशा में पड़े हुए हैं।.सुमंत्र का मन भाँपते हुए कैकेयी ने कहा- “महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रात भर जागे हैं”। महल से बाहर निकलने से पूर्व वे राम से बात करना चाहते हैं। सुमंत्र राम को लेने राम के भवन गए और अपने साथ ही उनको लेकर महाराज के पास आ गए। राम को देखकर महाराज फिर मूर्छित हो गए। कोई कुछ बोलता ही न था।

राम ने कैकेयी से पूछा कि माता तुम्हीं बताओ क्या बात है? कैकेयी ने राम को दो वर माँगने वाली बात बताई और कहा कि महाराज अपने दिए वचन से पीछे हट रहे हैं, जो शास्त्रसम्मत नहीं है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष तक वन में रहो। राम ने संयत रहकर दृढ़ता पूर्वक कहा-पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत.को राजगद्दी मिलेगी और मैं आज ही वन को चला जाऊँगा। कैकेयी के महल से निकलकर राम ने अपनी माता कौशल्या को यह जानकारी दी। कौशल्या यह सुनकर अपनी सुध-बुध खो बैठी। कौशल्या ने इसे राजा का एक गलत निर्णय बताते हुए राम को रोकना चाहा, परन्तु राम ने कहा-यह पिता की आज्ञा है, इसका पालन अवश्य होगा। लक्ष्मण ने राम के इस प्रकार वन जाने को कायरों का कार्य बताया। वे राम से कह रहे थे कि अपने बाहुबल से अयोध्या की गद्दी प्राप्त करो। राम ने लक्ष्मण से कहा कि मुझे अधर्म का सिंहासन नहीं चाहिए।

कौशल्या ने अपने आपको संभालते हुए राम को गले लगाया। वह भी राम के साथ वन को जाना चाहती थीं। राम ने अपनी माता से कहा कि इस समय पिता जी को आपकी सेवा की आवश्यकता है, अतः आप यहीं रहें। इसके बाद राम सीता के पास गए और सारी बात बताई। सीता ने कहा कि मैं भी आपके साथ चलूँगी। राम ने सीता को वन में होने वाली कठिनाइयों के बारे में बताया, परन्तु सीता नहीं मानी। तभी लक्ष्मण भी वहाँ आ गए। वे राम के साथ जाना चाहते थे। राम ने उनको चलने की स्वीकृति दे दी।

राम के वन जाने का समाचार पूरी अयोध्या में फैल चुका था। प्रजा बहुत दुखी थी। वे उनको रोकना चाहते थे। राम अपने पिता की आज्ञा लेने के लिए उनके पास गए। राम को देखकर उनमें प्राणों का संचार हुआ। मंत्रीगण कैकेयी को समझा रहे थे, परन्तु वह अपनी ज़िद पर अड़ी हुई थी। दशरथ राम से कह रहे थे–“पुत्र! मेरी मति मारी गई जो मैंने कैकेयी को दो वर दिए। तुम तो स्वतंत्र हो। तुम मुझे बंदी बनाकर कारागार में डाल दो और राज्य पर अधिकार कर लो।” राम ने कहा-“मुझे राज्य का लोभ नहीं है। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें।” इसी बीच रानी कैकेयी ने राम-लक्ष्मण और सीता के लिए वल्कल वस्त्र दिए। वे वल्कल वस्त्र पहनकर वन जाने को तैयार हो गए। तभी वशिष्ठ क्रोधित होकर बोले-“सीता वन जाएगी तो समस्त अयोध्यावासी भी वन जायेंगे। भरत सूनी अयोध्या पर राज करेंगे।” राम ने रथ पर चढ़कर सुमंत्र से कहा कि महामंत्री, आप रथ तेजी से चलाएँ। नगरवासी रथ के पीछे दौड़े। राजा दशरथ और नगरवासी भी रथ के पीछे-पीछे चल दिए। उनकी आँखों में आँसू देखकर राम विचलित हो गए। राजा दशरथ लगातार रथ की दिशा में आँखें गड़ाए देखते रहे। जब तक रथ आँखों से ओझल नहीं हो गया। वन अभी भी दूर था। वे तमसा नदी के किनारे पहुँचे। नगरवासी भी साथ-साथ आ रहे थे। उन्होंने भी नदी-किनारे ही रात बिताई। वे नगरवासियों को वहीं छोड़कर चुपचाप वहाँ से आगे चले गए। शाम होते ही वे गंगा नदी के किनारे पहुँचे। निषादराज ने उनका स्वागत किया। अगली सुबह राम ने महामंत्री सुमंत्र को समझा-बुझाकर वापिस भेज दिया।

सुमंत्र खाली रथ लेकर अयोध्या लौटे तो लोगों ने उनको घेर लिया और राम के बारे में पूछा। सुमंत्र बिना कुछ बोले राजभवन गए। दशरथ ने सुमंत्र से राम-लक्ष्मण और सीता के बारे में पूछा। सुमंत्र ने एक-एक कर महाराज के प्रश्नों के उत्तर दिए। राम-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। अगले दिन वशिष्ठ ने मंत्री-परिषद्.से चर्चा की। सबकी एक राय थी कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए।

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