Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 4 Question Answers Summary युगों का दौर

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Question and Answers

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के अवसान पर उसकी जगह किसने ली?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के अवसान पर उसकी जगह शुंग वंश ने ली।

प्रश्न 2.
मेनांडर किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?
उत्तर:
मेनांडर राजा मिलिंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
साँची के निकट कौन-सी लाट थी?
उत्तर:
साँची के निकट बेसनगर में ग्रेनाइट पत्थर की एक लाट है जो हेलिओदो स्तंभ के नाम से प्रसिद्ध है। इस पर संस्कृत का एक लेख खुदा था।

प्रश्न 4.
कुषाणों ने क्या काम किया?
उत्तर:
कुषाणों ने शकों. को पराजित करके दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। कुषाणों ने पूरे उत्तर भारत पर और मध्य एशिया के बहुत बड़े भाग पर अपना मजबूत साम्राज्य कायम कर लिया।

प्रश्न 5.
कुषाण काल में बौद्ध धर्म की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
कुषाण काल में बौद्ध धर्म दो संप्रदायों में बँट गया था-महायान और हीनयान। दोनों में मतभेद उठ खड़े हए। समस्याओं पर विवाद आयोजित किए जाते थे। महायान के सिद्धांतों का प्रचार चीन में हुआ तथा श्रीलंका और बर्मा के लोग हीनयान को मानते रहे। कुषाणों ने अपना भारतीयकरण कर लिया था।

प्रश्न 6.
गुप्त वंश का शासन कब से कब तक रहा?
उत्तर:
चौथी शताब्दी के आरंभ से लेकर 150 वर्षों तक गुप्त वंश ने उत्तर में एक बड़े एवं शक्तिशाली राज्य पर शासन किया। इसके बाद 150 वर्ष तक उनके उत्तराधिकारी अपने बचाव में लगे रहे और साम्राज्य सिकुड़कर छोटा होता चला गया।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

प्रश्न 7.
हूणों को किसने पराजित किया?
उत्तर:
हूणों को कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने पराजित किया। हर्ष ने उत्तर से मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। हर्षवर्धन कवि और नाटककार थे। उसने अपनी राजधानी उज्जयिनी को सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया।

प्रश्न 8.
भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया, उसका मूल आधार क्या था?
उत्तर:
भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया, उसका मूल आधार स्थिरता और सुरक्षा की भावना थी।

प्रश्न 9.
भारतीय रंगमंच की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
भारतीय रंगमंच अपने विचारों में विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। ऋग्वेद की ऋचाओं में रंगमंच का उद्गम खोजा जा सकता है।

प्रश्न 10.
संस्कृत नाटकों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
भास ने 13 नाटक लिखे।

  • अश्वघोष का प्राचीनतम नाटक है।
  • कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ नाटक लिखा।
  • शूद्रक ने ‘मृच्छकटिक’ नाटक लिखा।
  • विशाखदत्त का ‘मुद्राराक्षस’ नाटक प्रसिद्ध है।

प्रश्न 11.
संस्कृत भाषा के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
संस्कृत भाषा एक समृद्ध और अलंकृत भाषा है। इसके व्याकरण का ढाँचा पाणिनि ने तैयार किया। संस्कृत आधुनिक भारतीय भाषाओं की जननी है।

प्रश्न 12.
प्राचीन भारत में कौन-सा उद्योग बहुत विकसित था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में जहाज बनाने का उद्योग बहुत विकसित था। उस समय बनाए गए जहाजों का वर्णन ब्यौरेवार मिलता है। भारतीय बंदरगाहों का भी उल्लेख मिलता है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

प्रश्न 13.
भारतीय कला का प्रभाव विदेशों में किस प्रकार दिखाई देता है?
उत्तर:
जावा और बाली के मशहूर नृत्य भारत से लिए गए हैं। कंबोडिया में वर्णमाला दक्षिण भारत से ली गई है। भारतीय वास्तुकला का प्रभाव अंगकोर और बोरोबुदूर की इमारतों में दिखाई पड़ता है। भारतीय संगीत ने चीन और सुदूर-पूर्व के अलावा एशियाई संगीत को प्रभावित किया। मथुरा के संग्रहालय में बोधिसत्व की विशाल मूर्तियाँ हैं।

प्रश्न 14.
अजंता-एलोरा की गुफाओं के बारे में बताइए।
उत्तर:
गुप्तकाल के दौरान अजंता की गुफाएँ खोदी गईं। उनमें भित्तिचित्र भी बनाए गए। इन चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था। इनमें स्त्रियों के विभिन्न रूपों को दर्शाया गया था। 7वीं-8वीं शताब्दी में ठोस चट्टान को काटकर एलोरा की विशाल गुफाएँ तैयार हुई हैं। एलिफेंटा की गुफाओं में नटराज शिव की एक खंडित मूर्ति नृत्य मुद्रा में है।

प्रश्न 15.
भारत के विदेशी व्यापार के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारत का व्यापार दूर-दूर तक फैला था। भारत का कपड़ा उद्योग बहुत विकसित था। यहाँ रेशमी कपड़ा भी बनता था। आरंभिक शताब्दियों में भारत में रसायन शास्त्र का विकास अन्य देशों की तुलना में अधिक हुआ। दूसरे देशों में भारत के फौलाद और लोहे की बहुत कद्र थी।

प्रश्न 16.
प्राचीन भारत में गणित शास्त्र की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
आधुनिक अंकगणित और बीजगणित की नींव भारत में पड़ी। भारत में ज्यामिति का भी विकास हुआ। शून्य की विधि भी निकाली गई।

गणित में भास्कर महत्त्वपूर्ण थे। इनका ‘लीलावती’ ग्रंथ प्रसिद्ध है। ब्रह्मपुत्र ने शून्य पर लागू होने वाले नियम निश्चित किए।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Questions and Answers Summary युगों का दौर

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 4 Summary

गुप्त शासन में राष्ट्रीयता और साम्राज्यवाद- मौर्य शासन की समाप्ति पर शुंग वंश आया। भारतीय और यूनानी संस्कृतियों के मेल से अफगानिस्तान और सरहदी सूबे के क्षेत्र में गांधार की यूनानी बौद्ध कला का जन्म हुआ। मध्य एशिया में शक आक्सस नदी की घाटी में बस गए थे। ये शक बौद्ध और हिंदू हो गए थे। कुषाणों ने शकों को हराकर दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। शक काठियावाड़ और दक्खन की ओर चले गए। कुषाण काल में बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में बँट गया-महायान और हीनयान। इनमें विवाद होने लगा। एक नाम नागार्जुन उभरा। वह बौद्धशास्त्रों और भारतीय दर्शन के विद्वान थे। उन्हीं के कारण महायान की विजय हुई। चीन में महायान तथा लंका-बर्मा में हीनयान को मानते रहे।

चंद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य स्थापित किया। 320 ई. में गुप्त युग का आरंभ हुआ। इसमें कई महान शासक हुए। 150 वर्ष तक गुप्त वंश ने उत्तर में एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य स्थापित किया। भारत में हूणों का शासन आधी शताब्दी तक ही रहा। इनका दमन करके कन्नौज के राजा हर्षवर्धन ने उत्तर से लेकर मध्य भारत तक एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। हर्षवर्धन कवि और नाटककार था। उसकी मृत्यु 648 ई. में हुई थी।

दक्षिण भारत- दक्षिण भारत में मौर्य साम्राज्य के सिमटकर अंत हो जाने से एक हजार साल से भी ज्यादा समय तक बड़े-बड़े राज्य फूले-फले। दक्षिण भारत अपनी बारीक दस्तकारी और समुद्री व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। उत्तर भारत पर बार-बार होने वाले हमलों का सीधा प्रभाव दक्षिण पर नहीं पड़ा। इसका परोक्ष प्रभाव जरूर पड़ा कि बहुत से लोग उत्तर से दक्षिण में जाकर बस गए। इन लोगों में राजगीर, शिल्पी और कारीगर भी शामिल थे।

शांतिपूर्ण विकास और युद्ध के तरीके- मौर्य, कुषाण, गुप्त और दक्षिण भारत में आंध्र. चालुक्य, राष्ट्रकूट के अलावा और भी ऐसे राज्य हैं जहाँ दो-दो, तीन-तीन सौ वर्षों तक शासन रहा। जब कभी दो राज्यों के बीच कोई युद्ध या आंतरिक आंदोलन होता था तो आम जनता की दिनचर्या में बहुत कम हस्तक्षेप किया जाता था। यह धारणा भ्रामक है कि अंग्रेजी राज ने पहली बार भारत में शांति और व्यवस्था कायम की। अंग्रेजों के शासन में देश अवनति की पराकाष्ठा पर था। इस समय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था टूट चुकी थी।

प्रगति बनाम सुरक्षा- भारत में जिस सभ्यता का निर्माण किया गया, उसका मूल आधार स्थिरता और सुरक्षा की भावना थी। भारतीय दर्शन व्यक्तिवादी है; जबकि भारत का सामाजिक ढाँचा सामुदायिक है। पाबंदी के बावजूद पूरे समुदाय में लचीलापन था। रीति-रिवाज बदले जा सकते थे। यहाँ समन्वय की भावना थी। राजा आते-जाते रहे, पर व्यवस्था नींव की तरह कायम रही। ऐसे हर तत्त्व ने जो बाहर से आया और जिसे भारत में अपने आप में समा लिया। भारत को कुछ दिया और उससे बहुत कुछ लिया।

भारत का प्राचीन रंगमंच- भारतीय रंगमंच अपने मूलरूप में विचारों और विकास में पूरी तरह स्वतंत्र था। इसका उद्गम ऋग्वेद की ऋचाओं में खोजा जा सकता है। रंगमंच की कला पर रचित ‘नाट्यशास्त्र’ ईसा की तीसरी शताब्दी की रचना बताई जाती है। यह माना जाता है कि नियमित रूप से लिखे गए संस्कृत नाटक ई.पू. तीसरी शताब्दी तक प्रतिष्ठित हो चुके थे। भास द्वारा रचित तेरह नाटकों का संग्रह मिला है। संस्कृत नाटकों में प्राचीनतम नाटक अश्वघोष के हैं। उसने ‘बुद्धचरित’ नाम से बुद्ध की जीवनी लिखी। यह ग्रंथ भारत, चीन तिब्बत में बहुत प्रसिद्ध हुआ। 1789 ई. में कालिदास के नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ का अंग्रेजी अनुवाद सर विलियम जोर ने किया। गेटे पर भी इसका बड़ा प्रभाव पड़ा। कालिदास को संस्कृत साहित्य का सबसे बड़ा कवि और नाटककार माना गया है। कालिदास की एक लंबी कविता ‘मेघदूत’ है। शूद्रक का नाटक ‘मृच्छकटिक’ अर्थात् मिट्टी की एक गाड़ी प्रसिद्ध रचना है। विशाखदत्त का नाटक ‘मुद्राराक्षस’ था। इस ऊँचे दर्जे के रंगमंच के अलावा एक लोकमंच भी रहा है। इसका आधार भारतीय पुराकथाएँ तथा महाकाव्यों से ली गई कथाएँ होती थीं। दर्शकों को इन विषयों की अच्छी जानकारी रहती थी। संस्कृत साहित्य के पतन के काल में भाषा ने अपनी कुछ शक्ति और सादगी खो दी थी।

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय उपनिवेश और संस्कृति- ईसा की पहली शताब्दी से लगभग 900 ई. तक उपनिवेशीकरण की चार प्रमुख लहरें दिखाई पड़ती हैं। इन साहसिक अभियानों की सबसे विशिष्ट बात यह थी कि इनका आयोजन स्पष्टतः राज्य द्वारा किया जाता था। इन बस्तियों का नामकरण पुराने भारतीय नामों के आधार पर किया गया जिसे अब कंबोडिया कहते हैं, उस समय कंबोज़ कहलाया। जावा स्पष्ट रूप यवद्वीप है। साहसिक व्यवसायियों और व्यापारियों के बाद धर्म-प्रचारकों का जाना शुरू हुआ होगा। प्राचीन भारत में जहाज बनाने का उद्योग बहुत विकसित और उन्नति पर था। अजंता के भित्तिचित्रों में लंका-विजय और हाथियों को ले जाते हुए जहाजों के चित्र हैं।

विदेशों पर भारतीय कला का प्रभाव- भारतीय सभ्यता ने विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में अपनी जड़ें जमाईं। चंपा अंगकोर श्री विजय आदि स्थानों पर संस्कृत के बड़े-बड़े अध्ययन केंद्र थे। वहाँ के शासकों के विशुद्ध भारतीय और संस्कृत नाम थे। इंडोनेशिया और बाली आदि लेने अभी तक भारतीय संस्कृति को कायम रखा है। कंबोडिया की वर्णमाला दक्षिण भारत से ली गई है और बहुत से संस्कृत शब्दों को थोड़े हेरफेर से लिया गया है। जावा में बुद्ध के जीवन की कथा पत्थरों पर अंकित है। अंगकोर के विशाल मंदिर के चारों ओर विशाल खंडहरों का विस्तृत क्षेत्र है। कंबोडिया के राजा का नाम जयवर्मन था जो ठेठ भारतीय नाम है।

भारतीय कला का भारतीय दर्शन और धर्म से बहुत गहरा रिश्ता है। भारतीय संगीत जो यूरोपीय संगीत से इतना भिन्न है, अपने ढंग से बहुत विकसित था। मथुरा के संग्रहालय में बोधिसत्व की एक विशाल शक्तिशाली प्रभावशाली पाषाण प्रतिमा है। भारतीय कला अपने आरंभिक काल में प्रकृतिवाद से भरी है। भारतीय कला पर चीनी प्रभाव दिखाई देता है। गुप्त काल को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। इसी काल में अजंता की गुफाएँ खोदी गईं तथा उनमें भित्तिचित्र बनाए गए। इन चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था। इनमें सुंदर स्त्रियाँ, राजकुमारियाँ, गायिकाएँ, नर्तकियाँ बैठी हैं।

सातवीं-आठवीं शताब्दी में ठोस चट्टान को काटकर एलोरा की विशाल गुफाएँ तैयार हुईं। एलिफेंटा की गुफाओं में नटराज-शिव की एक खंडित मूर्ति है जिसमें शिव नृत्य की मुद्रा में है। ब्रिटिश संग्रहालय में विश्व का सृजन और नाश करते हुए नटराज शिव की एक मूर्ति है।

भारत का विदेशी व्यापार- ईस्वी सन् के एक हजार वर्षों के दौरान भारत का व्यापार दूर-दूर तक फैल चुका था। भारत में प्राचीन काल से ही कपड़े का उद्योग बहुत विकसित हो चुका था। यहाँ रेशमी कपड़ा भी बनता था। कपड़े रंगने की कला भी उन्नत थी। भारत में रसायन शास्त्र का विकास और देशों की तुलना में अधिक हुआ था। भारतीय लोहे व फौलाद का दूसरे देशों में बहुत महत्त्व था। भारतीयों को बहुत-सी धातुओं की जानकारी थी। औषधियों के लिए धातुओं का मिश्रण तैयार करना भी भारतीय जानते थे।

प्राचीन भारत में गणित शास्त्र- आधुनिक अंकगणित और बीजगणित की नींव भारत में ही पड़ी, ऐसा माना जाता है। बीजगणित का सबसे प्राचीन ग्रंथ आर्यभट्ट का है जिसका जन्म 427 ई. में हुआ था। भारतीय गणित शास्त्र में अगला नाम भास्कर का है। ब्रह्मपुत्र प्रसिद्ध खगोल शास्त्री था जिसने शून्य पर लागू होने वाले नियम निश्चित किए थे। अंकगणित की प्रसिद्ध पुस्तक ‘लीलावती’ है जिसके रचयिता भास्कर हैं।

विकास और ह्रास- चौथी से छठी शताब्दी तक गुप्त साम्राज्य समृद्ध होता रहा। स्वर्ण-युग के समाप्त होते ही ह्रास के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। सातवीं शताब्दी में हर्ष के शासनकाल में उज्जयिनी जो गुप्त शासकों की शानदार राजधानी थी, एक अन्य शक्तिशाली साम्राज्य का केंद्र बनती है। आगे के समय में वह भी कमजोर पड़कर खत्म हो जाती है। नौवीं शताब्दी में मिहिरभोज एक संयुक्त राज्य कायम करता है। 11वीं शताब्दी में एक बार दूसरा भोज सामने आता है। भीतरी कमजोरी ने भारत को जकड़ रखा था। छोटे-छोटे राज्यों में बँटे होने पर भी भारत समृद्ध देश था।

साहित्य के क्षेत्र में भवभूति आखिरी बड़ा व्यक्ति था। भारत समय के साथ-साथ क्रमशः अपनी प्रतिभा और जीवन-शक्ति को खोता जा रहा था। यह प्रक्रिया धीमी थी और कई सदियों तक चलती रही। राधाकृष्णन का कहना था कि भारतीय दर्शन ने अपनी शक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ खो दी है। हर सभ्यता के जीवन में ह्रास और विघटन के दौर आते रहते हैं। भारत ने उन सबसे बचकर नए सिरे से अपना कायाकल्प किया था। भारत के सामाजिक ढाँचे ने भारतीय सभ्यता को अद्भुत दृढ़ता दी थी। हर तरफ ह्रास हुआ- विचारों में, दर्शन में, राजनीति में, युद्ध पद्धति में और बाहरी दुनिया के बारे में जानकारी और संपर्क में।

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