CBSE Class 6 Hindi Vyakaran क्रिया
क्रिया का अर्थ है – ‘काम’।
काम या तो होता है या किया जाता है।
परिभाषा-क्रिया वह विकारी शब्द है जिसमें काम के करने या होने का बोध होता है।
धातु-क्रिया के मूल रूप को धातु (Root) कहते हैं। क्रिया के रूप धातु से बनते हैं। जैसे-‘खा’ धातु से-खाऊँगा, खाता, खाऊँ, खाई आदि।
इसी प्रकार ले, दे, जा, आदि धातुओं से विभिन्न क्रिया-रूप बनते हैं।
क्रिया के भेद (Kinds of Verb)
मुख्य रूप से क्रिया के दो भेद हैं-
1. अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
2. सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
1. अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)-जिन क्रियाओं में कर्म की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें अकर्मक क्रियाएँ कहा जाता है। ऐसे वाक्यों में क्रिया के व्यापार का फल कर्ता में ही रहता है। जैसे-
स्वाति दौड़ती है। बच्चा रोता है।
इन वाक्यों में ‘स्वाति’ और ‘बच्चा’ कर्ता हैं तथा ‘दौड़ना’ और ‘रोना’ क्रियाएँ हैं। इनके साथ कर्म है ही नहीं और न उसकी आवश्यकता है।
2. सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)-जिन क्रियाओं के व्यापार का फल सीधे कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं। कर्म के बिना ये वाक्य अधूरे प्रतीत होते हैं। जैसे-
मैंने खाया। (क्या खाया?) मैंने आम खाया। (आम-कर्म)
दूसरा वाक्य पूरा है तथा इसकी क्रिया ‘खाया’ सकर्मक है।
सकर्मक क्रिया की पहचान कर्ता और क्रिया के बीच ‘क्या’ और ‘किसे’ आदि प्रश्न करने से हो जाती है। यदि प्रश्न का उत्तर मिले तो क्रिया सकर्मक और न मिले तो क्रिया अकर्मक होती है।
जैसे-वह दूध पीता है। प्रश्न-वह क्या पीता है? उत्तर-दूध।
अत: ‘पीता है’ क्रिया सकर्मक है।
– द्विकर्मक क्रिया-द्विकर्मक क्रिया वाले वाक्यों में दो-दो कर्म होते हैं। इनमें पहला कर्म प्राय: प्राणीवाचक होता है। इसे ‘गौण कर्म’ कहते हैं। दूसरा कर्म प्रायः अप्राणीवाचक होता है और यह ‘मुख्य कर्म’ कहलाता है।
मुख्य कर्म विभक्ति-चिह्न (परसर्ग) रहित होता है और गौण कर्म के साथ प्राय: ‘को’ परसर्ग लगता है।
उदाहरण-मैं राम को पत्र लिखता हैँ।
इस वाक्य में दो कर्म हैं-
(i) राम को-प्राणीवाचक-गौण कर्म।
(ii) पत्र-अप्राणीवाचक-मख्य कर्म।
इन वाक्यों की रेखांकित क्रियाएँ-(क) भाग की क्रियाएँ एककर्मक हैं और ‘ख’ भाग की क्रियाएँ द्विकर्मक हैं।
क्रिया के अन्य भेद
संरचना की दृष्टि से क्रिया के पाँच भेद हैं-
- सामान्य क्रिया (Ordinary Verb)
- संयुक्त क्रिया (Compound Verb)
- नामधातु क्रिया (Nominal Verb)
- प्रेरणार्थक क्रिया (Causal Verb)
- पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb)
1. सामान्य क्रिया-इसमें केवल क्रिया का प्रयोग किया जाता है।
जैसे -राम गया, मैंने पढ़ा।,
2. संयुक्त क्रिया-इसमें दो या दो से अधिक क्रियाओं को मिलाकर प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- मैं खाना खा चुका हूँ।
- वह अब सो गया है।
3. नामधातु क्रिया-संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनी क्रियाएँ नामधातु क्रिया कहलाती हैं। जैसे-
- संज्ञा से-बात-से ‘बतियाना’; हाथ-से ‘हथियाना’।
- सर्वनाम से-में-से ‘मिमियाना’; अपना-से ‘अपनाना’।
- विशेषण से-गर्म-से ‘गर्माना’; नरम-से ‘नरमाना’।
4. प्रेरणार्थक क्रिया-जब कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को प्रेरणा देकर काम करवाता है, तब क्रिया का वह रूप प्रेरणार्थक क्रिया कहलाता है। जैसे-
क्रिया का सामान्य रूप | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
धोना | धुलना | धुलवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
सुनना | सुनाना | सुनवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
[वास्तव में द्वितीय कोटि की प्रेरणार्थक क्रियाएँ ही सही अर्थों में प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।]
5. पूर्वकालिक क्रिया-मुख्य क्रिया से पूर्व होने वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलांती है। जैसे-
- वह दूध पीकर चला गया।
- मैं नहाकर पुस्तक पढूँगा।