CBSE Class 6 Hindi Vyakaran समास
‘समास’ शब्द का अर्थ है-पास रखना अथवा छोटा करना। भाषा के प्रयोग में सामासिक शब्दों के प्रयोग से संक्षिप्तता और शैली में उत्कृष्टता एवं सटीकता आ जाती है।
उदाहरण के लिए –
‘राजा का महल’ कहने के स्थान पर ‘राजमहल’ कहना अधिक उपयुक्त है।
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते हैं।
जिस प्रकार किसी शब्द में प्रत्यय और/अथवा उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनते हैं, उसी प्रकार दो या दो से अंधिक शब्दों के मेल से भी नए शब्द बनते हैं। शब्द निर्माण की इस विधि को समास कहते हैं; जैसे-
विश्राम + गृह = विश्रामगृह – विश्राम के लिए गृह।
घोड़ा + सवार = घुड़सवार – घोड़े पर सवार।
सामासिक शब्द में प्राय: दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद तथा दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं और समास प्रक्रिया से बने पद को समस्त पद कहते हैं। समस्त पद के दोनों पदों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहते हैं; जैसे-‘गंगाजल’ समस्त पद में दो पद हैं-‘गंगा’ और ‘जल’। इसका विग्रह होगा ‘गंगा का जल’
समास के भेद :
समास के छह भेद होते हैं –
- तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
- कर्मधारय समास (Appositional Compound)
- द्विगु समास (Numeral Compound)
- बहुब्रीहि समास (Attributive Compound)
- द्वंद्व समास (Coupulative Compound)
- अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
1. तत्पुरुष समास-इस समास में उत्तरपद प्रधान होता है और पूर्वपद गौण होता है। तत्पुरुष समास की रचना में समस्त पदों के बीच में आने वाले परसर्गों जैसे-का, से, पर आदि का लोप हो जाता है। उदाहरणार्थ-
युद्ध क्षेत्र – युद्ध + क्षेत्र = युद्ध का क्षेत्र
राजकुमार – राज + कुमार = राजा का कुमार
रसोईघर – रसोई + घर = रसोई के लिए घर
हस्तलिखित – हस्त + लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित
पुस्तकालय – पुस्तक + आलय = पुस्तक का आलय
ध्यानमग्न – ध्यान + मग्न = ध्यान में मग्न
2. कर्मधारय समास-कर्मधारय समास में पूर्वपद विशेषण तथा उत्तरपद विशेष्य होता है अथवा पूर्वपद और उत्तरपद में उपमेय-उपमान का संबंध होता है; जैसे-
3. द्विगु समास-जिन समासों का पूर्वपद संख्यावाची शब्द हो, वहाँ द्विगु समास होता है। अर्थ की दृष्टि से यह समास प्राय: समूहवाची होता है; जैसे-
तिरंगा – तीन रंगों का समाहार
चौराहा – चार राहों का समाहार
चौमासा – चौ (चार) मासों का समाहार
4. बहुब्रीहि समास-बहुब्रीहि समास में दोनों पद गौण होते हैं तथा ये दोनों मिलकर किसी अन्य पद के विषय में कुछ संकेत करते हैं। अन्य पद ही ‘प्रध्नान’ होता है; जैसे-
5. द्वंद समास-इस समास में दोनों ही पद प्रधान होते हैं तथा दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोधक अव्यय का लोप हो जाता है; जैसे-
समस्त पद – विग्रह
भाई-बहन – भाई और बहन
सुख-दुख – सुख और दुख
रात-दिन – रात और दिन
भाई-बहन – भाई और बहन
सुख-दुख – सुख और दुख
रात-दिन – रात और दिन
6. अव्ययीभाव समास-इस समास में पूर्वपद अव्यय होता है और समस्त पद भी अव्यय (क्रिया-विशेषण) का काम करता है, जैसे-प्रतिदिन, यथाशक्ति। पुनरुक्त शब्दों में समास होने पर भी अव्ययीभाव समास होता है।
जैसे-साफ-साफ, जल्दी-जल्दी, दिनोंदिन।
समस्त पद – विग्रह
प्रत्येक – प्रति-एक
आजन्म – जन्म से लेकर
यथारक्ति – शक्ति के अनुसार
साफ-साफ – बिल्कुल स्पष्ट
रातोरोरत – रात ही रात में
समझो-
1. कर्मधारय और बहुबीहि समास में अंतर-समास के कुछ उदाहरण ऐसे हैं जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास, दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं। इन दोनों का अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना होगा।
कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे-‘कमलनयन’ में ‘कमल’ (उपमान) और ‘नयन.’ (उपमेय) है। इसी प्रकार ‘पीतांबर’ में ‘पीत’ (विशेषण) और अंबर (विशेष्य) है। अतः ये उदाहरण कर्मधारय समास के हैं।
बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है, जैसे-पीतांबर’-पीले अंबर (वस्त्र) हैं जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण।
पन ध्यान रखें-जब दोनों पदों में कोई पद प्रधान नहीं होता और दोनों पद किसी अन्य पद का बोध कराएँ तब वहाँ बहुबीहि समास होता है। जहाँदोनों पदों में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो, तब वहाँ कर्मधारय समास होता है।
2. द्विगु और बहुबीहि समास में अंतर-द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद उसका विशेष्य। बहुब्रीहि समास में पूरा (समस्त) पद ही विशेषण का कार्य करता है। कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं जिन्हें दोनों समासों में रखा जा सकता है। विग्रह करने पर ही स्थिति स्पष्ट होती है। जैसे-