CBSE Class 6 Hindi Vyakaran संधि
‘संधि’ शब्द का अर्थ है-जोड़ या मिलन। जब दो शब्द मिलते हैं और उनके मिलने के कारण उनकी ध्वनियों में परिवर्तन होता है, इसी को संधि कहा जाता है। जैसे-सिंह + आसन = सिंहासन।
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्दों पर ध्यान दीजिए-
- शरणागत की रक्षा करनी चाहिए।
- अतिथियों का यथोचित सत्कार करो।
- सग्जन का आदर करो।
- मेरे मन की दुर्भावना दूर हो गई।
अब समझें –
पहले वाक्य में ‘शरणागत’ शब्द ‘शरण + आगत’ से मिलकर बना है। ‘शरण’ के अंत का ‘अ’ और ‘आगत’ के आरंभ का ‘आ’ मिलकर ‘आ’ बन गया। इसमें दो स्वरों (अ + आ) के मिलने से संधि हुई है।
दूसरे वाक्य में ‘यथोचित’ शब्द ‘यथा + उचित’ के योग से बना है। ‘यथा’ के अंत का ‘आ’ और ‘उचित’ के आरंभ का ‘उ’ मिलकर ‘ओ’ बन गया है। यहाँ दो स्वरों (आ + उ) के मिलने से संधि हुई है।
तीसरे वाक्य में ‘सज्जन’ शब्द ‘सत् + जन’ के योग से बना है। ‘सत्’ के अंत का ‘त्’ और ‘जन’ के आरंभ का ‘ज’ मिलकर ‘ज्ज’ बना है। यहाँ दो व्यंजनों (त् + ज) में संधि हुई है।
चौथे वाक्य में ‘दुर्भावना’ शब्द (दु: + भावना) में ‘दु:’ में विसर्ग से पहले ‘उ’ स्वर है और भावना के आरंभ में ‘भा’ वर्ण है। अतः विसर्ग का ‘र्’ होकर ‘डुर्भावना’ शब्द बना है। यहाँ विसर्ग की ‘भा’ के साथ संधि हुई है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि ध्वनियों के पास-पास आ जाने से उनके मिलने पर जो परिवर्तन या विकार होता है, उसे संधि कहते हैं।
संधियुक्त शब्दों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को संधि-विच्छेद कहते हैं।
उपर्युक्त चारों पदों का संधि-विच्छेद इस प्रकार होगा-
- शरणागत = शरण + आगत
- सज्जन = सत् + जन
- यथोचित = यथा + उचित
- दुर्भावना = दुः + भावना
संधि के भेद :
संधि के तीन भेद हैं-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
1. स्वर संधि-स्वर से परे स्वर आने पर शब्दों के मेल से उनमें जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं, जैसे-
हिम + आलय = हिमालय
मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
स्वर संधि पाँच प्रकार की होती है-
(क) दीर्घ संधि
(ख) गुण संधि
(ग) वृद्धि संधि
(घ) यण् संधि
(ङ) अयादि संधि।
(क) दीर्घ संधि-अ-आ से परे अ-आ होने पर दोनों मिलकर आ; इ-ई से परे इ-ई होने पर दोनों मिलकर ई; उ, ऊ होने पर दोनों मिलकर ऊ हो जाता है। इस संधि का परिणाम दीर्घ स्वर होता है, अत: इसे दीर्घ संधि कहते हैं। जैसे-
(ख) गुण संधि-अ अथवा आं के बाद इ अथवा ई हो तो दोनों मिलकर ए; अ अथवा आ के बाद् उ अथवा ऊ हो तो दोनों मिलकर ओ तथा अ अथवा आ के बाद ळ हो तो दोनों मिलकर अर् हो जाते हैं। जैसे-
(ग) वृद्धि संधि-अ अथवा आ के बाद ए अथवा ऐ हो तो दोनों मिलकर ऐ तथा अ अथवा आ के बाद ओ अथवा औ हो तो दोनों को मिलाकर औ हो जाता है। जैसे-
(घ) यण् संधि-इ अथवा ई के बाद इ और ई को छोड़कर यदि कोई अन्य स्वर हो तो इ अथवा ई के स्थान पर ‘य्’, उ अथवा ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उनके स्थान पर ‘व्’ और ऋ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उसके स्थान पर ‘ र् ‘ हो जाता है। जैसे-
(ङ) अयादि संधि-ए, ऐ, ओ, औ के बाद यदि कोई भी स्वर हो तो ‘ए’ का ‘अय’, ‘ऐ’ का ‘आय’, ‘ओ’ का ‘अव्’ और ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है।
ने + अन = नयन
पो + अन = पवन
नौ + इक = नाविक
गै + अक = गायक
पौ + अक = पावक
भौ + उक = भावुक
टिप्पणी-हिन्दी में ये शब्द रूढ़ या तत्सम माने जाएँगे। संस्कृत के समान इसमें संधि नहीं मानी जाएगी। आजकल इन शब्दों को हिंदी में संधियुक्त नहीं माना जाता।
2. व्यंजन संधि-व्यंजन से परे व्यंजन या स्वर आने पर जो संधि होती है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन संधि के प्रमुख नियम ये हैं-
(क) वर्ग का तृतीय वर्ण-वर्गों के प्रथम वर्ण से परे वर्गों का तृतीय-चतुर्थ वर्ण, कोई स्वर अथवा य, र, ल, व, ह आदि वर्णों में से कोई वर्ण हो तो पहले वर्ण को अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है-
दिक् + अंबर = दिगंबर
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
कृत् + अंत = कृदंत
वाक् + ईश = वागीश
सत् + धर्म = सद्धर्म
(ख) वर्ग का पंचम वर्ग-वर्ग के प्रथम या तृतीय वर्ण से परे पाँचवां वर्ण हो, तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है-
वाक् + मय = वाङ्मय
चित् + मय = चिन्मय
षट् + मास = षण्मास
षड् + मुख = षण्मुख
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
(ग) त् के बाद ज या झम हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘ज्’ हो जाता है-
सत् + जन् = सज्जन
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
जगत् + जननी = जगज्जननी
विपत् + जाल = विपज्जाल
(घ) त् के बाद ड या ढ हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘ज्’ हो जाता है-
उत् + डयन = उड्डयन
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
(ङ) त् के बाद ल हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘ल्’ हो जाता है-
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लेख = उल्लेख
(च) त् के बाद यदि श हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘च्’ और ‘श’ के स्थान पर ‘छ’ हो जाता है-
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
उत् + श्वास = उच्छवास
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
तत् + शिव = तच्छिव
(छ) यदि ‘त्’ के बाद च/ह हो तो ‘त्’ का ‘च्’ हो जाता है-
उत् + चारण = उच्चारण
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
(ज) त् के बाद ह हो तो ‘त्’ का ‘द्’ और ‘ह्’ का ‘ध’ हो जाता है-
तत् + हित = तद्धित
उत् + हार = उद्धार
(झम) ‘म्’ के बाद यदि कोई स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म्’ के स्थान पर उसी वर्ग का अंतिम वर्ण हो जाता है-
सम् + कल्प = सङ्कल्प (संकल्प)
सम् + तोष = सन्तोष (संतोष)
सम् + चय = सन्वय (संचय)
भाषण = सम्भाषण (संभाषण)
टिप्पणी : हिन्दी में अब संकल्प, संतोष आदि का प्रयोग ही अधिक हो रहा है। इन्हीं को मानक प्रयोग स्वीकार किया गया है।
(ञ) ‘म्’ के बाद य, र, ल, व, स, श, ह हो तो ‘म्’ अनुस्वार हो जाता है-
सम् + योग = संयोग
सम् + वाद = संवाद
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + शय = संशय
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + हार = संहार
अपवाद : यदि सम् के बाद ‘राट्’ हो तो म् का म् ही रहता है। सम् + राट् = सम्राट।
(ट) ‘छ’ से पूर्व स्वर हो तो ‘छ’ से पूर्व ‘च’ आ जाता है।
परि + छेद = परिच्छेद
आ + छादन् = आच्छादन
(ठ) हलस्व स्वर इ, उ के बाद यदि ‘र्’ हो और ‘र्’ के बाद फिर ‘र’ हो तो हस्व स्वर दीर्घ हो जाता है। ‘र्’ का लोप हो जाता है।
निर + रस = नीरस
निर + रोग = नीरोग
(ङ) न् का ण होना : यदि ॠ, र, ष के बाद ‘न’ व्यंजन आता है तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है। जैसे-
राम + अयन = रामायण
परि + नाम = परिणाम
कुछ अन्य उदाहरण
क् का ग्
दिक् + अंबर = दिगंबर
दिक् + गज् = दिग्गज
वाक् + ईश = वागीश
दिक् + अंत = दिगंत
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
वाक् + दत्ता = वागदत्ता
त् का द्
तत् + भव = तद्भव
तत् + अनुसार = तदनुसार
जगत् + अंबा = जगदंबा
छ् संबंधी नियम
संधि + छेद = संधिच्छेद
अनु + छेद = अनुच्छेद
स्व + छंद = स्वच्छंद
परि + छेद = परिच्छेद
‘म्’ संबंधी नियम
सम् + गति = संगति
सम्. + बोधन = संबोधन
सम् + जीवन = संजीवन
सम् + तोष = संतोष
सम् + भाषण = संभाषण
सत् + गति = सद्गति
भवगत् + गीता = भगवद्गीता
सत् + भावना = सद्भावना
सम् + भव = संभव
3. विसर्ग संधि-विसर्ग से परे स्वर या व्यंजन आने पर जो संधि होती है उसे विसर्ग संधि कहते हैं, विसर्ग संधि के प्रमुख नियम ये हैं-
(क) विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और बाद में कोई घोष व्यंजन (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण, य, र, ल, व, ह) हो तो, विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है :
मन: + बल = मनोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
तम: + गुण = तमोगुण
तप: + वन = तपोवन
रज: + गुण = रजोगुण
मन: + हर = मनोहर
अध: + गति = अधोगति
पय: + धर = पयोधर
ख. विसर्ग के बाद यदि च, छु हो तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है :
नि: + चित = निश्चित
नि: + छल = निश्छल
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
(ग) विसर्ग के बाद यदि ट्, व् हो तो विसर्ग का प हो जाता है :
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
(घ) विसर्ग के बाद यदि त, थ हो तो विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है :
दु: + तर = दुस्तर
नम: + ते = नमस्ते
(ङ) विसर्ग के पहले कोई स्वर हो या बाद में कोई घोष ध्वनि (स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवां वर्ण) एवं य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग का ‘र’ होता है:
नि: + जन = निर्जन
नि: + यात = निर्यांत
नि: + बल = निर्बल
नि: + लिप्त = निर्लिप्त
नि: + विकार = निर्विकार
पुन: + जन्म = पुनर्जन्म
दु: + गुण = दुर्गुण
नि: + लोभ = निर्लोभ
(च) विसर्ग से परे श, ष, स हो तो विसर्ग के विकल्प से परे वाला वर्ण हो जाता है :
नि: + संदेह = निस्संदेह
दु: + शासन = दुशशासन
(छ) यदि विसर्ग से पूर्व ‘इ’ अथवा ‘उ’ हो तथा बाद में क, ख, य, फ हो तो विसर्ग का ‘प्’ हो जाता है :
नि: + कलंक = निष्कलंक
दु: + कर = दुष्कर
नि: + पाप = निष्पाप
नि: + फल = निष्फल
विसर्ग संधि के कुछ अन्य उदाहरण
मन: + हर = मनोहर
अध: + गति = अधोगति
नि: + बल = निर्बल
मन: + विकार = मनोविकार
दु: + कर्म = दुष्कर्म
नम: + ते = नमस्ते
रज: + गुण = रजोगुण
नि: + कपट = निष्कपट
दु: + उपयोग = दुरुपयोग
पुन: + जन्म = पुनर्जन्म
अत: + एव = अतएव
नि: + तेज = निस्तेज
दु: + आशा = दुराशा
नि: + संदेह = निस्संदेह
दु: + शासन = दुश्शासन
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
नि: + रोग = नीरोग
नि: + छल = निश्छल
नि: + काम = निष्काम
नि: + कलंक = निष्कलंक