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CBSE Class 6 Sanskrit Grammar वर्णमाला तथा वर्ण विचारः
वर्ण अथवा अक्षर दो प्रकार के होते हैं।
1. स्वराः(स्वर) – वे अक्षर जिनका उच्चारण करने के लिए किसी अन्य अक्षर की सहायता नहीं लेनी पड़ती।
2. व्यञ्जनानि(व्यंज्जन) – वे अक्षर जिनका उच्चारण करने के लिए किसी स्वर की सहायता लेनी पड़ती है।
स्वर के भेद
उच्चारण के आधार पर स्वरों के तीन भेद हैं –
(क) हैस्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगे, उन्हें ‘हस्व स्वर’ कहते हैं;जैसे-अ, इ, उ, ऋ और लू।
(ख) दीर्घ स्वर – जिन स्वरों का उच्चारण हास्व स्वर से दोगुने समय में हो, उन्हें ‘दीर्घ स्वर’ कहते हैं;जैसे-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
(ग) प्लुत स्वर – जिन स्वरों को पुकारने में हस्व स्वर से तीन गुना समय लगता है, उसे ‘प्लुत स्वर’ कहते हैं;जैसे-ओइमू, हे राशम्!इसके प्रतीक के रूप में ३ (तीन)लिखा जाता है।
व्याकरण की दृष्टि से स्वर के अन्य दो भेद भी होते हैं- (i) मूल स्वर और (ii) सन्धि स्वर।
(i) मूल स्वर – वे स्वर हैं,जो अखण्ड हैं। अर्थात् इनके और छोटे खण्ड(टुकड़े)नहीं किए जा सकते हैं। ये पाँच हैं – अ, इ, उ, ॠ, लु।
(ii) सन्धि स्वर – किसी-न-किसी अन्य स्वर की सन्धि से बनते हैं। ये आठ हैं- आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ;जैसे-
अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
ऋ + ॠ = ऋ
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
उ + उ = ऊ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ।
स्वरा:(स्वर) – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ।
व्यञ्जनानि
हलन्त चिंह्ध
यदि हम ‘क’ का उच्चारण करें तो ‘क्’ के साथ ‘अ’ की ध्वनि भी मुख से निकलती है। वास्तव में ‘क्’ आदि व्यञ्जनों का उच्चारण ‘अ’ की सहायता से ही सम्भव होता है, जिससे ‘क’ ध्वनि निकलती है।
जैसे-
क = क् + अ, ग = ग् + अ
ख = ख् + अ, घ = घ् + अ इत्यादि।
अवधेयम्-किसी व्यज्जन में ‘अ’ जुड़ने पर उसके नीचे लगे हलन्त चिह्न का लोप हो जाता है।
स्वर तथा व्यञ्जन के अतिरिक्त संस्कृत भाषा में दो और ध्वनियाँ भी हैं। जिन्हें अयोगवाह कहते हैं-
(i) अनुस्वार (‘) – यथा-संगीतम्, संस्कृतम्, संस्कारः, पुल्लिन्नम, आदि।
(ii) विसर्ग (:) – यथा-रोहितः, संदीप:, छत्र:, सिंह:, शुक:, आदि।
अनुस्वार तथा विसर्ग – ये दोनों धनियाँ केवल स्वरों के साथ ही प्रयोग में लाई जाती हैं। अनुस्वार नासिका (नाक से निकलने वाली) ध्वनि है। विसर्ग का उच्चारण ‘ह’ की भाँति होता है।
जब कोई स्वर व्यक्जन में जोड़ा जाता है तो मात्रा के रूप में दर्शाया जाता है।
यथा-
स्वर तथा व्यज्जन के सार्थक मेल से शब्द् बनते हैं।
शब्द में आए वर्णों को क्रम से अलग-अलग करने को हम वर्ण-विन्यास कहते हैं।
यथा-
वर्ण संयोगः
वर्णों को जोड़ने की प्रक्रिया को हम वर्ण-संयोग कहते हैं।
संयुक्त-अक्षरा:
संस्कृत भाषा में कुछ संयुक्त अक्षर भी हैं। जब एक स्वर-रहित व्यज्जन दूसरे व्यक्जन से जुड़कर एक अक्षर (व्यक्जन) बन जाता हैं, उसे संयुक्त अक्षर कहते हैं; यथा –
क् + ष् = क्ष् (क्ष्रमा)
श् + र् = श्र् (आश्रम:)
द् + य् = द्य् (विद्या)
त् + र् = त्र् (क्षत्रियः)
ज् + ज् = = ज् (ज्ञानी)
र् + प् = र्प् (सर्प:), इत्यादि।
अकारान्त तथा आकारान्त शब्द
अब उपर्युक्त दोनों वाक्यों पर विचार करते हैं-
(1) बालकः पर्ठति और (2) राधा लिखति।
इनमें दो मूल संज्ञा शब्द हैं-
(1) बालक और (2) राधा।
‘बालक’ (बालक् + अ) अकारान्त शब्द है। अकारान्त वे शब्द होते हैं जिनका अंतिम अक्षर ‘अ’ होता है; जैसे- बालक, छात्र, अध्यापक, विद्यालय, कलम, अश्व, सिंह, आदि अकारान्त हैं।
‘राधा’ (राध् + आ) आकारान्त शब्द है। आकारान्त वे शब्द होते हैं जिनका अंतिम अक्षर ‘ आ’ होता है; इसी प्रकार लता, अध्यापिका, शाखा, दिव्या, वालिका, वाटिका, आदि भी आकारान्त शब्द हैं।
इकारान्त (कवि, मुनि), उकारान्त (साधु, शिशु), ईकारान्त (नदी, सखी), ऋकारान्त (मातृ, पितृ) शब्द भी होते हैं। इनकी चर्चा अगली कक्षा में होगी।
अम्यास प्रश्ना:
1. वर्णसंयोजनेन पदं लिखत- (1/2 × 4 = 2)
यथा- च् + अ + प् + अ + क् + अ: = चषक:
(i) स् + औ + च् + ‘इ + क् + अ:
(ii) श् + उ + न् + अ + क् + औ
(iii) ध् + आ + व् + अ + त् + अ:
(iv) व् + ऋ + द् + ध् + आ:
उत्तराणि:
(i) सौचिक:
(ii) शुनकौ
(iii) धावतः
(iv) वृद्धाः।
2. वर्णंसंयोजनेन पदं लिखत- (1 / 2 × 4 = 2)
(i) ग् + आ + य् + अ + न् + त् + इ
(ii) क् + उ + र् + उ + त् + अ:
(iii) स् + थ् + आ + ल + इ + क् + आ
(iv) घ् + अ + द् + इ + क् + आ
उत्तराणि:
(i) गायन्ति
(ii) कुरुत
(iii) स्थालिका
(iv) घटिका।
3. वर्णसंयोजनेन पदं लिखत (1/2 × 4 = 2)
(i) स् + त् + + ई + ल् + ङ् + ग् + अ:
(ii) म् + आ + प् + इ + क् + आ
(iii) प् + अ + र् + प् + अ + म्
(iv) ख् + अ + न् + इ + त् + र् + अ + म्
उत्तराणि :
(i) स्त्रीलिंग,
(ii) मापिका,
(iii) पर्णम्,
(iv) खनित्रम्।
4. वर्णसंयोजनेनं पर्दं लिखत (1/2 × 4 = 2)
(i) प् + उ + र् + आ + ण् + आ + न् + इ
(ii) प् + ओ + ष् + + +क् + आ + ण् + इ
(iii) क् + अ + + क् + अ + त् + + + म्
(iv) क् + ॠ + त् + व् + आ
उत्तराणि :
(i) पुराणानि
(ii) पोषकाणि
(iii) कङ्तुत्
(iv) कृत्चा।
5. वर्णंसंयोजनेन पदं लिखत- (1 / 2 × 4 = 2)
(i) व् + इ + श् + व् + आ + स् + अ:
(ii) द् + व् + आ + र् + अ + म्
(iii) प् + ड + स् + त् + अ + क् + अ + म्
(iv) त् + व् + आ + म्
उत्तराणि :
(i) विश्वासः
(ii) द्वारम
(iii) पुस्तकम्
(iv) त्वाम्।
6. पदानां वर्णविच्छेंद्य प्रदर्शयत (1/2 × 4 = 2)
(i) सीव्यति
(ii) वर्णा:
(iii) कुक्कुरौ
(iv) मयूरा:
7. पदानां वर्णविच्छेदं प्रदर्शयत-
(i) बालक:
(ii) कोकिले
(iii) चटके
(iv) धाविका:
उत्तराणि :
8. पदानां वर्णविच्छेदं प्रदर्शयत- (1/2 × 4 = 2)
(i) कुज्चिका:
(ii) खट्वा
(iii) छुरिका
(iv) व्यञ्जनम्
उत्तराणि :