We are offering NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Grammar Book अनुवादः Questions and Answers can be used by students as a reference during their preparation.
Sanskrit Vyakaran Class 7 Solutions अनुवादः
संस्कृत में अनुवाद करने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए
वचन
(क) एक वस्तु या एक व्यक्ति के लिए एकवचन का प्रयोग होता है। यथा
(i) बालः गच्छति — बालक जाता है।
(ii) मृगः धावति — हिरण दौड़ता है।
(iii) शिशुः क्रीडति — बच्चा खेलता है।
(iv) कन्या हसति — कन्या हँसती है।
(v) पत्रं पतति — पत्ता गिरता है।
(ख) दो वस्तु या दो व्यक्तियों के लिए द्विवचन का प्रयोग होता है। यथा
(i) बालौ गच्छतः — दो बालक जाते हैं।
(ii) मृगौ धावतः — दो हिरण दौड़ते हैं।
(iii) शिशू क्रीडतः — दो बच्चे खेलते हैं।
(iv) कन्ये हसतः — दो कन्या हँसती हैं।
(v) पत्रे पततः — दो पत्ते गिरते हैं।
(ग) दो से अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है यथा
(i) बालाः गच्छन्ति — बालक जाते हैं।
(ii) मृगाः धावन्ति — हिरण दौड़ते हैं।
(iii) शिशवः क्रीडन्ति — बच्चे खेलते हैं।
(iv) कन्याः हसन्ति — कन्या हँसती हैं।
(v) पत्राणि पतन्ति — पत्ते गिरते हैं।
पुरुष
वक्ता के लिए अस्मद्, श्रोता के लिए युष्मद् तथा अन्य के लिए तद् या एतद् का प्रयोग होता है :
(i) अहं पठामि — मैं पढ़ता हूँ।
(ii) त्वं लिखसि — तू लिखता है।
(iii) सः चलति — वह चलता है।
(i) आवां पठावः — हम दो पढ़ते हैं।
(ii) युवां लिखथः — तुम दो लिखते हो।
(iii) तौ चलतः — वे दो चलते हैं।
(i) वयं पठामः — हम सब पढ़ते हैं।
(ii) यूयं लिखथ — तुम सब लिखते हो।
(iii) ते चलन्ति — वे सब चलते हैं।
ध्यान रहे कि अस्मद् और युष्मद् के तीनों लिंगों में एक समान रूप होते हैं। यथा
अहं पठामि — मैं पढ़ता हूँ। पढ़ती हूँ।
त्वं पठसि — तू पढ़ता है। पढ़ती है।
कारक
कारक के लिए उचित विभक्ति का प्रयोग करना चाहिए। यथा
प्रथमा विभक्तिः
1. खगः कूजति — पक्षी कूजता है।
2. सः धावति — वह दौड़ता है।
3. मयूरः नृत्यति — मोर नाचता है।
द्वितीया विभक्तिः
1. सः पाठं पठति — वह पाठ पढता है।
2. रमा गीतं गायति। — रमा गीत गाती है।
3. देवः लेख लिखति –देव लेख लिखता है।
तृतीया विभक्तिः
1. श्यामः यानेन गच्छति श्याम जहाज से जाता है।
2. मोहनः पादाभ्यां गच्छति मोहन पैदल जाता है।
3. लता दण्डेन गां ताडयति लता डण्डे से गाय को पीटती है।
चतुर्थी विभक्तिः
1. राजा निर्धनाय धनं यच्छति — राजा निर्धन को धन देता है।
2. गुरुः शिष्याय पुस्तकं यच्छति — गुरु शिष्य को पुस्तक देता है।
3. सः भिक्षुकाय अन्नं ददाति — वह भिखारी को अन्न देता है।
पञ्चमी विभक्तिः
1. वृक्षात् फलं पतति — वृक्ष से फल गिरता है।
2. अश्वात् देवः पतति — घोड़े से देव गिरता है।
3. लतायाः पुष्पं पतति — बेल से फूल गिरता है।
षष्ठी विभक्तिः
1. इदं मम पुस्तकम् अस्ति — यह मेरी पुस्तक है।
2. इदं तव गृहम् अस्ति — यह तेरा घर है।
3. इयं रमायाः लेखनी अस्ति — यह रमा की कलम है।
सप्तमी विभक्तिः
1. गृहे शिशुः क्रीडति — घर में बच्चा खेलता है।
2. उपवने मयूरः नृत्यति — बगीचे में मोर नाचता है।
3. वृक्षे खगाः कूजन्ति — वृक्ष पर पक्षी चहचहाते हैं।
संस्कृत में कुछ उपपद विभक्तियों का प्रयोग भी होता है। यथा
द्वितीया विभक्तिः
1. ग्रामम् उभयतः वृक्षाः सन्ति — गाँव के दोनों ओर वृक्ष हैं।
2. नगरं परितः जलम् अस्ति — शहर के चारों ओर जल है।
3. गृहम् अभितः अश्वत्थः अस्ति — घर के सामने पीपल का वृक्ष है।
4. ग्रामं समया विद्यालयः अस्ति — गाँव के निकट स्कूल है
तृतीया विभक्तिः
1. सः नेत्रेण काणः अस्ति — वह एक आँख से काणा है।
2. अलं हसितेन — हँसो मत।
3. रमा आकृत्या सुन्दरी अस्ति — रमा आकार से सुन्दर है।
4. देवः पित्रा सह आपणं गच्छति — देव पिता के साथ बाजार जाता है।
चतुर्थी विभक्तिः
1. रमा पुष्पेभ्यः स्पृहयति — रमा फूलों की इच्छा करती है।
2. गुरवे नमः — गुरु को नमस्कार।
3. अग्नये स्वाहा — अग्नि को अर्पित है।
4. अलं मल्लो मल्लाय — यह पहलवान उस पहलवान के लिए पर्याप्त है।
पञ्चमी विभक्तिः
1. बालः सर्पात् बिभेति — बच्चा साँप से डरता है।
2. वीरः देशं शत्रुभ्यः त्रायते — वीर देश को शत्रुओं से बचाता है।
3. अहं गुरोः संस्कृतं पठामि — मैं गुरु से संस्कृत पढ़ता हूँ।
4. त्वं नगरात् बहिः गच्छति — तुम शहर से बाहर जाते हो।
षष्ठी विभक्तिः
1. ग्रामस्य अन्तिके कूपः अस्ति — गाँव के निकट कुआँ है।
2. हिमालयस्य शिखरेषु हिमम् अस्ति — हिमालय की चोटियों पर बर्फ है।
3. अत्र मम विद्यालयः अस्ति। — मेरा स्कूल यहाँ है
4. किम् अयं तव भ्राता अस्ति? — क्या यह तुम्हारा भाई है
सप्तमी विभक्तिः
1. पशुषु गौः उत्तमा भवति — पशुओं में गाय उत्तम होती है।
2. खगेषु मयूरः सुन्दरः अस्ति — पक्षियों में मोर सुन्दर है।
3. कविषु कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति — कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है।
4. नदीषु गंगा पवित्रतमा अस्ति — नदियों में गंगा पवित्र है।
लकार
काल को लकार कहते हैं। काल के आधार पर धातु में जो विकार होता है, उसे क्रियापद कहते हैं। पठति एक क्रिया पद है जो लट् लकार में प्रयुक्त हैं। धातु में वचन एवं पुरुष के अनुसार विकार होता है। इस प्रकार प्रत्येक लकार में नौ क्रियापद होते हैं :
लट् लकार
संस्कृत में कर्तृपद और क्रियापद में पुरुष व वचन एकसमान होते हैं। यथा
वयं पठामः।
संस्कृत में लकारों का निम्न प्रकारेण प्रयोग होता है। यथा
लट् लकार (वर्तमान काल)
1. सः चित्रं पश्यति — वह चित्र देखता है।
2. कन्या गीतं गायति — कन्या गीत गाती है।
3. पशुः तृणं खादति — पशु घास खाता है।
4. रमा लेखं लिखति — रमा लेख लिखती है।
5. बालः प्रार्थनां करोति — बच्चा प्रार्थना करता है।
लङ् लकार (भूतकाल)
1. उपवने मयूरः अनृत्यत् — बगीचे में मोर नाचा।
2. सुलभा गृहम् आगच्छत् — सुलभा घर आ गई।
3. सः वने सिंहम् अपश्यत् — उसने वन में सिंह को देखा।
4. श्रीरामः वनम् अगच्छत् — श्रीराम वन में गए।
5. अहं फलानि अभक्षयम् — मैंने फल खाये।
लृट् लकार (भविष्यकाल)
1. सूर्योदये प्रकाशः भविष्यति — सूर्य के निकलने पर प्रकाश होगा।
2. जनाः जले तरिष्यन्ति — लोग जल में तैरेंगे।
3. अहं श्वः आगमिष्यामि — मैं कल आऊँगा।
4. रमा पित्रा सह गमिष्यति — रमा पिता के साथ जायेगी।
5. सः गीतां पठिष्यति — वह गीता पढ़ेगा।
लोट् लकार (आज्ञार्थक)
1. मेघाः वर्षन्तु — बादल वर्षा करें।
2. अद्य अवकाशः भवतु — आज अवकाश होवे।
3. बालकाः अत्र क्रीडन्तु — बालक यहाँ खेलें।
4. अधुना पाठं पठ — अब तुम पाठ पढ़ो।
5. मयूराः नृत्यन्तु — मोर नाचें।
अभ्यास
1. निम्नलिखित का संस्कृत में अनुवाद करें
(क) राम हँसता है।
(ख) देव पढ़ता है।
(घ) हिरण दौड़ते हैं।
(ङ) शेर दहाड़ता है।
(च) मैं फूल सूंघता हूँ।
(छ) हम पाठ पढ़ते हैं।
(ज) तुम क्यों खेलते हो?
(झ) बच्चा दूध पीता है।
(ञ) रमा फल खाती है।