NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक

Our detailed NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक Textbook Questions and Answers help students in exams as well as their daily homework routine.

पहलवान की ढोलक NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 14

पहलवान की ढोलक Questions and Answers Class 12 Hindi Aroh Chapter 14

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था ? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए?
उत्तर :
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में अनूठा तालमेल था। लुट्टन का कोई गुरु नहीं था, इसलिए उसने ढोल को ही अपना गुरु माना था। कुश्ती के समय वह ढोल की तान को अपने गुरु का स्वर मानकर दाँव-पेंच लगाया करता था। ढोल की आवाज ही लुट्टन की शक्ति बढ़ाती थी; उसे धैर्य प्रदान करती थी तथा निरंतर साहस भी देती थी। लुट्टन ‘चट्-गिड़-धा, चट्-गिड़, चट्-गिड़-धा’ ध्वनि सुनकर अपने हृदय में धैर्य पाता था तथा उसका डर भाग जाता था।

वह ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना’….ध्वनि को सुनकर तैयार हो जाता था तथा अपने प्रतिद्वंद्वी का दाँव काट बाहर निकल आता था। अंत में ‘चटाक्-चट्-धा, चटाक्-चट्-धा’ ध्वनि से प्रेरित होकर ही लुट्टन ने चाँद सिंह पहलवान को पटककर जमीन पर दे मारा था। जब उसने ‘धिना-धिना, धिक्-धिना’ सुना तो अपना पूरा जोर लगाकर चाँद को चारों खाने चित कर दिया।

इस प्रकार ढोलक की आवाज़ लुट्टन के दाँव-पेंच को निरन्तर सहारा प्रदान करती थी तथा एक गुरु के समान उसका पथ-प्रदर्शन किया करती थी, जिसके बलबूते पर लुट्टन ने एक प्रसिद्ध पहलवान को पटककर चित कर दिया था। पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द तथा ढोल की आवाज हमें निरंतर प्रेरित करती है; जैसे-चट् धा, गिड़, चट्-धा, ‘गिड़-धा’ व ‘चगिड़-धा, चगिड़-धा, चट-गिड़-धा’ स्वर ‘मत डरना, मत डरना’ को दोहराता है।

‘धाक् धिना, तिरकट-तिना, धाक्-धिना, तिरकट तिना’ स्वर से ‘दाँव काटो बाहर जा’ ध्वनि पैदा होती है। इसी प्रकार ‘धिना-धिना, धिक्-धिना’ ध्वनि से चित करने की प्रेरणा मिलती है।

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प्रश्न 2.
कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए? (Outside Delhi 2017, Set-III)
उत्तर :
कहानी के प्रारंभ, मध्य और अंत के मोड़ पर लुट्टन के जीवन में अग्रलिखित परिवर्तन आए

(i) प्रारंभ-कहानी के प्रारंभ में लुट्टन सिंह अपने गाँव में रात्रि की विभीषिका में ढोल बजाकर संजीवनी प्रदान किया करता था। नौ वर्ष की अवस्था में ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी उसकी शादी बचपन में हो गई थी, इसलिए उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने ही किया। बचपन में वह गाय चराया करता था। गायों का दूध पीकर वह कसरत करने लगा। इसलिए उसका शरीर
सुडौल और हट्टा-कट्टा बन गया। अब वह गाँव में अच्छा पहलवान समझा जाने लगा था।

(ii) मध्य-कहानी के मध्य में लुट्टन सिंह को अपने जीवन में भरपूर तरक्की मिली। उसने श्यामनगर में लगने वाले मेले में चाँद सिंह नामक पहलवान को हराया, जिससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। श्यामनगर के राजा श्यामानंद ने उसकी वीरता से प्रभावित होकर उसे अपना राज पहलवान बना दिया। अब उसका सारा खर्च राजमहल की तरफ़ से होने लगा। बाद में उसने नियमित कसरत
और व्यायाम के बलबूते ‘काला खाँ’ जैसे-अनेक प्रसिद्ध पहलवानों को हराया। वह एक अजेय पहलवान बन गया। उसने अपने दोनों बेटों को भी पहलवान बना दिया था।

(iii) अंत-कहानी के अंत में लुट्टन सिंह के जीवन पर वज्रपात हुआ और वह उन्नति व प्रसिद्धि के शिखर से नीचे गिर गया। श्यामनगर के राजा श्यामानंद का स्वर्गवास हो गया था। उनके स्थान पर विलायत से नया राजा आ गया, जिसने सारी व्यवस्था को बदल दिया। दंगल का स्थान घोड़ों की रेस ने ले लिया था। राजा के दुर्व्यवहार का शिकार होकर लुट्टन सिंह श्यामनगर को छोड़ अपनी ढोलक कंधे पर लटकाकर गाँव वापस आ गया। गाँव में अचानक महामारी फैल गई। सूखा पड़ा, अनाज कम पड़ गया। गाँव में चारों ओर लोग हैजे और मलेरिया से मरने लगे। उसके दोनों बेटे भी इसी विभीषिका में मारे गए और अंततः रात्रि में एक दिन लुट्टन सिंह भी मृत्यु को प्राप्त हो गया।

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प्रश्न 3.
लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? (C.B.S.E. Sample Paper)
उत्तर :
‘उसका गुरु कोई पहलवान नहीं यही ढोल है’ लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा, क्योंकि उसने किसी पहलवान से कुश्ती के दांव-पेंच नहीं सीखे थे और न ही उसका लक्ष्य एक पहलवान बनना था। वह तो बचपन में गाय चराता हुआ गायों की धार का गरम दूध पीया करता था। इसी से उसका शरीर हट्टा-कट्या हो गया था। वह लोगों से बदला लेने के लिए कसरतें करता था। जब श्यामनगर में वह मेला देखने गया, तो वहाँ के दंगल में ढोल बज रहा था; पहलवान कुश्ती कर रहे थे। अचानक ही वह पहलवान से लड़ने हेतु अखाड़े में कूद पड़ा और अंत में उसने ढोल से प्रेरणा लेते हुए प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को हरा दिया।

प्रश्न 4.
गाँव में महामारी फैलने और बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान होल क्यों बजाता रहा? (C.B.S.E. 2010, Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011 Set-II)
उत्तर :
जब महामारी फैली, तो सारा गाँव हैजे और मलेरिये से ग्रस्त हो गया। चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। घर के घर खाली हो गए थे। रात्रि की विभीषिका में चारों ओर सन्नाटा छा जाता था। रात्रि की उसी विभीषिका को तोड़ने तथा लोगों में जीने की उमंग पैदा करने के लिए लुट्टन पहलवान ढोल बजाता था।

जब उसके दोनों बेटे महामारी की चपेट में आ गए, तो वे असह्य वेदना से बिलखते हुए उससे कहने लगे कि ‘बाबा! उठा-पटक दो वाला ताल अर्थात चटाक्-चट्-धा, चटाक्-चट् धा ताल बजाओ। लुट्टन सारी रात वह ताल बजाता रहा। सुबह होते ही उसके दोनों बेटों की मृत्यु हो गई। अतः अपने बेटों की अंतिम इच्छा को पूर्ण करने के लिए उनके देहांत के बावजूद भी लुट्टन पहलवान ढोल बजाता रहा।

प्रश्न 5.
ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था? (C.B.S.E. Delhi 2008, A.I.C.B.S.E. 2011, Set-III, 2012, Set-I, 2013, Set-I,C.B.S.E. 2018)
अथवा
पहलवान की ढोलक एक ओर ग्रामीणों के स्वाभिमान की प्रतीक है तो दूसरी ओर दम तोड़ते ग्रामीणों को मृत्यु का सामना करने का हौसला देती है। टिप्पणी कीजिए। (Delhi C.B.S.E. 2016, Set-III, A.I. 2016, Set-III)
उत्तर :
ढोलक की आवाज गाँववालों में धैर्य, साहस और स्फूर्ति प्रदान करती थी; रात्रि की विभीषिका तथा सन्नाटे को ललकार कर चुनौती पैदा करती थी। जब पूरा गाँव महामारी के कारण मलेरिये और हैज़े से त्रस्त होकर अधमरा, निर्बल और निस्तेज हो गया था, तब इस भयंकर वातावरण में ढोलक की आवाज़ लोगों को संजीवनी प्रदान किया करती थी। उपचार व पथ्य विहीन लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी।

वह आवाज़ बच्चों, जवानों और बूढ़ों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य पैदा कर देती थी। ढोल की आवाज़ सुनकर शक्तिहीन शिराओं में बिजली-सी दौड़ पड़ती थी। मरते हुए प्राणियों को भी आँख मूंदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी तथा लोग मृत्यु से भी नहीं डरते थे। इसे सुनकर लोगों के मन में जीने की नई उमंग पैदा हो जाती थी।

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प्रश्न 6.
महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था ? (C.B.S.E. 2017, Set-1)
उत्तर
सूर्योदय दृश्य-महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग रोते-चिल्लाते और दुखी होते हुए अपने-अपने घरों से बाहर निकलते थे। वे महामारी की भेंट चढ़ रहे पड़ोसियों और परिचित लोगों के घर जाकर उन्हें ढाढ़स देते थे। जिस माँ का बच्चा मलेरिये व हैजे का शिकार हो जाता था अथवा किसी का पति मर जाता था, तो गाँववाले उसके परिवार को धैर्य देने का प्रयास करते थे। घर में पड़े मुर्दो को बिना कफ़न के ही नदी की भेंट चढ़ा दिया करते थे।

सूर्यास्त दृश्य-सूर्यास्त होते ही रात्रि की विभीषिका गाँव में अपना साम्राज्य स्थापित कर लेती थी। सब तरफ़ सन्नाटा छा जाता था। गाँव के लोग भयभीत होकर अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे। रात्रि के गहन अंधकार में झोंपड़ियों से बोलने तक की आवाज़ नहीं आती थी। यहाँ तक कि रात की विभीषिका के कारण उनके बोलने की शक्ति भी क्षीण हो जाती थी।

यदि समीप किसी माँ का बेटा मर जाता था, तो उसे अंतिम बार बेटा कहने की भी किसी में हिम्मत भी नहीं होती थी। रात्रि की इस विभीषिका को केवल पहलवान की ढोलक चुनौती देती थी। वह सारी रात उसे बजाता था। ढोलक की आवाज़ इन अधमरे पथ्यविहीन गाँववालों में संजीवनी देने का कार्य करती थी। इसी आवाज से उनकी शक्तिहीन शिराओं में बिजली-सी दौड़ जाती थी।

प्रश्न 7.
कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
उत्तर
(क) पहले कुश्ती या दंगल लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को विशेष सम्मान दिया जाता था,
लेकिन अब उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जाता, क्योंकि आज न तो कुश्ती या दंगल समाज का प्रिय खेल है और न ही भागदौड़ की इस जिंदगी में लोगों के पास इसे देखने या प्रोत्साहित करने का समय है। फिर प्राचीन लोक-संस्कृति भी धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। अब न तो पहले जैसे संस्कार और मानवीय संवेदनाएँ बची हैं और न ही कुश्ती को प्रोत्साहित करने वाले राजा-महाराजा। दम तोड़ती मानवीय संवेदनाओं व अव्यवस्था के कारण प्राचीन लोक-संस्कृति भी दम तोड़ रही है।

(ख) कुश्ती या दंगल की जगह अब आधुनिक खेलों ने ले ली है। इनमें क्रिकेट, घुड़दौड़, मोटर-रेस, बॉस्केटबॉल, फुटबॉल आदि खेल प्रसिद्ध हैं। आज के युग में क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है।

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(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं

  • लोगों के मन में लोक-संस्कृति को जागृत किया जाए।
  • सरकार कुश्ती को राष्ट्रीय खेलों में सम्मिलित करे।
  • मीडिया इस खेल का विश्व-स्तर पर प्रसारण करे।
  • सरकार की ओर से पहलवानों के लिए उपयुक्त आर्थिक योजनाएं बनाई जाएँ।

प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट करें
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी।
अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर :
प्रस्तुत गदयांश का आशय है कि मलेरिया और हैजे के फैलने से संपूर्ण वातावरण त्रस्त था। चारों ओर भयानक अँधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसे भयानक वातावरण में आकाश से टूटकर यदि कोई तारा भावुक होकर पृथ्वी पर जाना भी चाहता था, तो इस विभीषिकापूर्ण वातावरण से त्रस्त होकर उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही क्षीण हो जाती थी। अमावस्या के गहन अंधकार में आकाश से टूटने वाले तारों का प्रकाश भी पृथ्वी पर दिखाई नहीं देता था। ऐसी स्थिति में आकाश के अन्य तारे उस तारे की भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे।

प्रश्न 9.
पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(1) अँधेरी रात-चुपचाप आँसू बहा रही थी। आशय-गाँव में फैले मलेरिया और हैजे के कारण सारा गाँव दहल गया था। ऐसा लगता था मानो अँधेरी रात भी इस पीड़ा को देखकर चुपचाप आँसू बहा रही थी। आकाश से टूट कर कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी।

आशय-दुःख में डूबे गाँववासियों का कोई सहायक नहीं था। आकाश से टूटा तारा भी मानो सहायता के लिए नहीं था, क्योंकि वह आकाश से तो चला पर नीचे पहुँच नहीं पाया। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे। आशय-दुख में डूबे गाँववासियों की सहायता के लिए आगे बढ़ा टूटा तारा भी जब भूमि पर नहीं पहुंच पाया, तो अन्य तारे उसकी भावुकता या असफलता पर खिलखिला कर हँस पड़ते थे। जो स्वयं दूसरों के दुख से दुखी नहीं होते, वे सहायता करने वालों का मजाक बनाते हैं।

पाठ के आस-पास

1. पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसे किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे/करेंगी ?
2. ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी-कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।

चर्चा करें

कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने कक्षा अध्यापक/ अध्यापिका की सहायता से स्वयं हल करें।

भाषा की बात

प्रश्न 1 .
हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए
उत्तर :

  • चिकित्सा-अस्पताल, डॉक्टर, नर्स, टीका, सुई, दवाई, कैप्सूल।
  • क्रिकेट-कोच, बॉल, बल्ला, छक्का, चौका, आउट, एल०बी०डब्ल्यू०।
  • न्यायालय-मजिस्ट्रेट, वकील, न्यायाधिकारी, अपराध, जमानत, दंड।
  • अपनी पसंद का कोई क्षेत्र – विद्यार्थी, अध्यापक, शिक्षा-कक्ष, पीरियड, छुट्टी।

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प्रश्न 2.
पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल
भाषाई सर्जनात्मकता बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं

  • फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
  • राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिदधि में चार चांद लगा दिए।
  • पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।

इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर
अनुच्छेद-लुट्टन पहलवान बहुत बलशाली था। अखाड़े में अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को देखते ही वह उस पर बाज़ की तरह टूट पड़ा। काफी देर तक लड़ने के पश्चात लुट्टन ने अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया। सब ओर उसकी वाहवाही होने लगी। उसकी बहादुरी को देखकर राजा साहब ने उसे अपने दरबार में रख दिया। राजा की इस स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। सारे राज्य में लुटन का नाम गूंजने लगा। लेकिन उसकी पत्नी दो पहलवान बच्चों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।

प्रश्न 3.
जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है। आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई. पड़ता है?
उत्तर
समानता

  • क्रिकेट और कुश्ती दोनों की कमेंट्री में कमेंटेटर की आवश्यकता होती है।
  • दोनों में हार-जीत को महत्व दिया जाता है।
  • दोनों में खेल के प्रत्येक पल की सूचना दी जाती है।

अंतर

  • क्रिकेट की कमेंट्री में बल्लेबाज व गेंदबाज का वर्णन होता है, जबकि कुश्ती की कमेंट्री में पहलवान व दांव-पेंच का।
  • क्रिकेट में स्कोर या रन खेल आधार होता है, जबकि कुश्ती में चित या पहलवान का।

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