NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 उषा

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उषा NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6

उषा Questions and Answers Class 12 Hindi Aroh Chapter 6

कविता के साथ

प्रश्न 1.
कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है? (C.B.S.E. Delhi 2009, 2010, Set-I, A.I.C.B.S.E. 2011, Set-I, C.B.S.E. Oustside Delhi 2013, Set-I)
अथवा
‘शमशेर की कविता गाँव की सुबह का जीवंत चित्रण है।’ पुष्टि कीजिए। (A.I.C.B.S.E. 2016)
उत्तर :
प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह ने गतिशील बिंब-योजना का प्रयोग करते हुए गाँव की सुबह का सुंदर शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है। बहुत सुबह पूर्व दिशा में सूर्य दिखाई देने से पहले वह नीले शंख के समान प्रतीत हो रहा था। उसका रंग ऐसा लग रहा था जैसे किसी गाँव की महिला ने चूल्हा जलाने से पहले राख से चौका पोत दिया था। उसका रंग गहरा था।

कुछ देर बाद हलकी-सी लाली दिखाई दी जिस देखकर ऐसा लगा जैसे काली सिल पर जरा-सा लाल केसर डाला हो और फिर उसे धो दिया हो या किसी ने स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। आकाश के नीलेपन में सूर्य ऐसे प्रकट हुआ जैसे नीले जल में किसी का गोरा सुंदर शरीर झिलमिलाता हुआ प्रकट हो रहा हो। लेकिन सूर्य के दिखाई देते ही यह सारा प्राकृतिक सौंदर्य मिट गया। कवि के द्वारा प्रस्तुत बिंब-योजना गतिशील है और उससे पल-पल बदलते गाँव के प्राकृतिक दृश्यों की सुंदरता प्रकट हो पाई है।

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प्रश्न 2.
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
नई कविता में कोष्ठक, विरामचिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाड़ा।
उत्तर
भावों को सबल रूप में प्रकट करने के लिए विरामचिह्नों का जितना महत्त्व बोलचाल की भाषा में होता है उतना ही लिखित भाषा में भी होता हैं। प्रयोगवादी कवियों ने परंपरागत कविता में अपनाई जानेवाली शैली से कुछ हटकर इन चिह्नों का प्रयोग अपनी कविता में करना आरंभ किया है।

कवि ने अपनी पंक्तियों में कोष्ठक का प्रयोग कर अपने कथन को स्पष्टता प्रदान की है। सुबह-सवेरे का आकाश गहरा स्लेटी-सा प्रतीत होता है। उस रंग में स्लेटीपन की थोड़ी अधिकता होती है, उसे स्पष्ट करने के लिए कवि ने कोष्ठक का प्रयोग करते हुए स्पष्ट किया है। गीला चौका अधिक गहरे रंग का होता है पर सूख जाने पर उसका स्लेटी रंग हलका हो जाता है।

अपनी रचना

प्रश्न 1.
अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्द-चित्र खींचिए।
उत्तर:
जब सुबह होती है तो सूर्योदय से पहले पूर्व दिशा लाली से भर उठती है। ऐसे लगता है जैसे गुलाल की लाली सब ओर फैल गई है। ठंडी-ठंडी हवा बहने लगती है जो तन-मन को प्रफुल्लित तरोताजा कर देती है। पेड़ झूमने लगते हैं। रंग-बिरंगे पक्षी चहचहाते हुए डालियों पर इधर-उधर कूदने-फुदकने लगते हैं।

किसान अपने-अपने खेतों की ओर चल देते हैं और औरतें पानी भरने के लिए पनघट की ओर खिलखिलाती-चहचहाती चल देती हैं। वह बिना किसी विशेष बात के ही हँसती है। कौवे और भैंसें सुबह-सुबह चरागाहों की ओर चल देती हैं। उनके पीछे-पीछे चरवाहे अपनी लाठियाँ लिए भाग-दौड़ करने लगते हैं। सूर्यास्त के समय पश्चिम दिशा सूर्य की लाली से भर उठती है। बादलों की उपस्थिति उनमें न जाने कितने रंगों की शोभा भर देती है। सुबह के समय चरागाहों की ओर गए पशु वापिस अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं।

वे रँभाते-दौड़ते-भागते अपने घरों की ओर लौटते हैं। झोंपड़ों से धुएँ की लंबी-लंबी लकीरें आकाश की ओर उठने लगती हैं। दिनभर के थके-हारे किसान वापिस अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं। धीरे-धीरे लाली का रंग बदलने लगता है। वह रात्रि के कालेपन की ओर बढ़ने लगती है।

आपसदारी

सूर्योदय का वर्णन लगभग सभी बड़े कवियों ने किया है। प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ और अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ की. पंक्तियाँ आगे बॉक्स में दी जा रही हैं। ‘उषा’ कविता के समानांतर इन कविताओं को पढ़ते हुए नीचे दिए गए बिंदुओं पर तीनों कविताओं का विश्लेषण कीजिए और यह भी बताइए कि कौन-सी कविता आपको ज्यादा अच्छी लगी और क्यों?

  • उपमान
  • शब्द-चयन
  • परिवेश

बीती विभावरी जाग री!

अंबर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,

लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए

तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री। – जयशंकर प्रसाद

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भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथ :
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े पंखी
डैनों-वाले डील-वाले डौल के बेडौल
उड़ने जहाज,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया को:
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलानेवाली कल की उदंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी। – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर
शमशेर बहादुर सिंह की ‘उषा’, जयशंकर प्रसाद की ‘बीती विभावरी जाग री’ तथा अज्ञेय की ‘बावरा अहेरी’ कविताओं का आधार एकसमान है। तीनों महाकवियों ने प्रात:कालीन शोभा का चित्रण सुंदर ढंग से किया है पर तीनों के शिल्प और भाषा में बहुत बड़ा अंतर है। जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं तो अन्य दोनों कवि प्रयोगवादी कवि हैं। इसलिए उनके शिल्प में अंतर दिखाई देना सहज-स्वाभाविक है। उनमें उपमान, शब्द-चयन और परिवेश के आधार पर स्पष्ट अंतर है

उपमान – श्री शमशेर बहादुर सिंह को प्रातः का आसमान नीले शंख-सा प्रतीत होता है तो प्रसाद जी को आसमान पनघट के समान लगता है पर अज्ञेय ने तो भोर को पक्षी पकड़नेवाले बहेलिए के रूप में चित्रित किया है। सुबह के समय का आकाश तरह-तरह के मोहक रंगों से सजा-सँवरा प्रतीत होता है।

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वह राख से लीपे चौके के समान है, काली सिल पर लाल केसर के निशान की तरह है, स्लेट पर लाल खड़िया चॉक की तरह है या नीले आकाश रूपी सरोवर में झिलमिलाती सूर्य की देह हिलती हुई अति सुंदर लगती है। प्रसाद जी के अनुसार पक्षी चहचहाने लगते हैं। नन्हे-नन्हे पत्ते हवा के झोंकों से काँपने लगते हैं और बेलें सुंदर रसभरे फूलों से लद जाते हैं। अज्ञेय को आधुनिक वैज्ञानिक युग के उपभागों ने अधिक आकृष्ट किया है।

शब्द – चयन-शमशेर बहादुर सिंह और अज्ञेय की कविताओं में तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है जबकि प्रसाद जी की भाषा तत्सम शब्दावली से युक्त है। उनका शब्द-चयन गेयता की दृष्टि से अनुकूल और प्रभावपूर्ण है। उसमें लयात्मकता की योजना के लिए शब्दों की कोमलता की ओर विशेष ध्यान रखा गया है।

परिवेश – प्रसाद जी की कविता में मानवीकरण का सुंदर प्रयोग है और प्रकृति की शोभा के अनुसार परिवेश चित्रण की योजना की गई है। शमशेर बहादुर सिंह की कविता में प्रकृति से जुड़े और चाक्षुक बिंबों की ऐसी योजना की गई है कि वे मन को गहरा प्रभावित करते हैं लेकिन अज्ञेय की कविता में नगरीय वातावरण की झलक है। धुएँ से भरा वातावरण, चिमनियों की उपस्थिति से प्रकृति की कोमलता से दूर करता है।

मुझे इन तीनों कविताओं में से प्रसाद जी की ‘बीती विभावरी जाग री’ अच्छी लगी है क्योंकि इसमें अपेक्षाकृत कोमलता है, सहजता है, गतिशीलता है, लयात्मकता है, छंदबद्धता है और भावात्मकता की अधिकता है। इसकी शब्द-योजना इतनी स्वाभाविक है कि शेष दोनों कविताएँ इसकी तुलना में पीछे दिखाई देती हैं।

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