Our detailed NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Textbook Questions and Answers help students in exams as well as their daily homework routine.
कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 8
कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Questions and Answers Class 12 Hindi Aroh Chapter 8
पाठ के साथ
प्रश्न 1.
कवितावली के उदधृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने-अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। (A.I. C.B.S.E. 2016, C.B.S.E. 2010, Set-1)
उत्तर :
तुलसी के समकालीन समाज में आर्थिक विषमता और गरीबी का बोलबाला था। इन्होंने अपने काव्य में समकालीन युग का यथार्थ चित्रण किया है। कवि ने ग़रीबी और आर्थिक विषमता को बखूबी झेला था। इसलिए उन्होंने इसके सजीव चित्र उकेरे हैं कि उस युग में किसान के पास खेती नहीं थी, भिखारी को भीख नहीं मिलती थी, न व्यापारी के पास व्यापार था और न ही नौकर के पास काम-धंधा। समाज के सामने आर्थिक विषमता और ग़रीबी ही मुख्य समस्या थी। यहाँ तक कि समाज में लोग अपने पेट की आग मिटाने के लिए अपने बेटा-बेटी को भी बेच देते थे। इस प्रकार कवि ने युगीन समाज की आर्थिक विषमता का सजीव चित्रण किया है।
प्रश्न 2.
पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।युग-सत्यह
उत्तर :
पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य समकालीन युग में भी सत्य था । और आज भी सत्य है। भक्त यदि भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से भक्ति और कर्म करे तो पेट की माग ही नहीं वरन भक्त का उद्धार भी हो सकता है।
इस सृष्टि में ईश्वर ही सत्य, वही जन्मदाता और पालनहार है फिर जिस प्रभु ने जन्म दिया हो क्या वह अपने बच्चों का पेट नहीं भरेगा। भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर जब ईश्वर भक्ति का मेघ बरसता है तो भक्त को संपूर्ण संसार की खुशियाँ मिल जाती हैं। इस प्रकार यदि भक्त भगवान के प्रति एकनिष्ठ भक्ति करता है और अपना कर्म भी निष्ठापूर्वक निभाता है तो ईश्वर उसकी पेट की आग को ही शांत नहीं करता बल्कि उसके जीवन का भी उद्धार कर देता है।
प्रश्न 3.
तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कही, रजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटी से बेटी न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?
उत्तर :
भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज है। सदियों से यहाँ विवाह की परंपरा रही है कि बेटी के माँ-बाप को बेटे के माँ-बाप के यहाँ हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक रस्म अदा करते हैं। अतः बेटे के घरवालों को बेटी के घरवाले अधिक सम्मान और इज्जत देते हैं। इस प्रकार यदि इस सवैये में कवि का बेटा सों बेटी न व्हायब कहते तो सामाजिक अर्थ बिलकुल विपरीत हो जाता अर्थात बेटे की जगह बेटी अथ.. पुरुष की जगह स्त्री का वर्चस्व प्रकट होता जिससे भारतीय समाज की परंपरा भी टूट जाती।
प्रश्न 4.
धूत कही….वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़नेवाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-l. II, III)
अथवा
‘धूत कहौ, अवधूत कही…’ सवैये में तुलसीदास का स्वाभिमान प्रतिबिंबित होता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए। (Outside Delhi 2017, Set-1)
उत्तर :
तुलसीदास जी आदर्शवादी चेतना के कवि हैं। बचपन से उनमें स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। जन्म देते ही माँ-बाप ने उनको त्याग दिया। उनका जीवन अत्यंत कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। बाद में रलावली से शादी करने पर भी उन्हें फटकार मिली।
तुलसी जी ने अपनी पत्नी की एकमात्र फटकार से दुनिया से वैराग्य ले लिया था और वे एकनिष्ठ-भाव से प्रभु राम की भक्ति में लीन हो गए थे। इस प्रकार उनका संपूर्ण जीवन दर-दर भटककर व्यतीत हुआ लेकिन वे कभी किसी के सामने गिड़गिड़ाए नहीं। उन्होंने समाज में प्रचलित जाति-पाति और धर्म का खुलकर विरोध किया। वास्तव में वे बाहर से सीधे-सादे-सरल थे लेकिन अंदर से एक स्वाभिमानी भक्त हृदय छिपाए थे। हम इससे पूर्णतः सहमत हैं।
प्रश्न 5.
व्याख्या करें
(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौँ जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेऊँ नहिं ओहू॥
(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिन फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
(ग) माँगि के बैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एक न दैबो को दोऊ॥
(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
उत्तर :
उत्तर के लिए सप्रसंग व्याख्या का अंश देखिए।
प्रश्न 6.
भ्रातृशोक में हुई गम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्क पूर्ण उत्तर दीजिए। (C.B.S.E. Outside Delhi 2013. Set-11)
उत्तर :
हाँ, भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात राम अत्यंत व्याकुल हो उठते हैं। वे कभी तो लखन को अपने हृदय से उठाकर लगाते हैं, तो कभी उनसे बात करने के लिए कहते हैं। लक्ष्मण के बिना राम फूट-फूट कर रो रहे हैं। वे लक्ष्मण से कहते हैं कि यदि मैं जानता कि वन में भाई को खोना पड़ेगा तो मैं अपने पिता दशरथ के वचन को कभी नहीं मानता।
राम कहते हैं कि संसार में सुत, धन, संपत्ति, भवन, परिवार तो बार-बार मिल जाते हैं लेकिन लक्ष्मण जैसा भाई बार-बार नहीं मिल सकता। वे सोच रहे हैं कि अब मैं अयोध्या में क्या मुँह लेकर जाऊँगा? सब यही कहेंगे कि राम ने अपनी पत्नी के लिए अपने भाई को न्योछावर कर दिया। इस संसार में उनको कलंक लेकर जीना पड़ेगा।
यहाँ तक कि राम एक पत्नी अर्थात सीता की हानि को विशेष नहीं मान रहे थे जबकि अपने भाई लक्ष्मण के लिए सामान्य जन की भाँति फूट-फूट कर रो रहे थे। वे लखन के बिना अपने को अधूरा समझ रहे थे कि जैसे पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप तथा सूंड के बिना हाथी का जीवन व्यर्थ है उसी तरह लक्ष्मण के बिना राम का जीवन भी व्यर्थ रह जाएगा। वस्तुतः भ्रातृशोक में राम की दशा एक सामान्य मनुष्य की भाँति हो गई थी।
प्रश्न 7.
शोक-ग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
अथवा
शोक के वातावरण में हनुमान के अवतरण का क्या प्रभाव पड़ा था?
उत्तर :
लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात समस्त माहौल शोकग्रस्त हो गया था। राम लक्ष्मण को अपने हृदय से लगाकर फूट-फूट कर रो रहे थे। इनके साथ-साथ समस्त भालू-वानर सेना राम को देख अत्यंत दुखी थे। यहाँ तक कि राम-सेना का प्रत्येक प्राणी, वीर शोक-मग्न था। श्रीराम तो सामान्य मनुष्य की भाँति करुणावस्था में पहुंच चुके थे। वे बार-बार लक्ष्मण को देखकर अनेक बातें याद करते हुए रो रहे थे लेकिन जैसे ही हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर शोक-सभा में पहुंचे तो वे पूरा का पूरा पर्वत ही अपने हाथ पर उठा लाए थे।
हनुमान को देख राम तथा समस्त जन थोड़े खुश हुए तथा शीघ्र ही वैद्य जी ने लक्ष्मण को संजीवनी बूटी पिलाई तो लक्ष्मण हर्षित होकर उठ खड़े हुए। राम सहित समस्त वानर-सेना खुश हो गई। इस प्रकार शोक-ग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव कहा गया है।
प्रश्न 8.
“जैहऊँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई॥
बरु अपजस सहतेंउँ जग माहीं। नारि हानि विसेष छति नाहिं।।”
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर :
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति उपेक्षित भाव प्रकट हुआ है। समाज में स्त्री को उपेक्षित समझा जाता है। उसे पुरुष के समान इज्जत नहीं दी जाती। समाज नारी की अस्मिता को संदेहपूर्ण दृष्टि से देखता है और उसे असहाय और निर्बल समझकर पग-पग पर उसके मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1.
कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर अज तथा निराला की सरोज-स्मृति में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 2.
‘पेट को हि पचत बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्म-हत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर :
तुलसी युग में भी समाज में भुखमरी, गरीबी का बोलबाला था और आज भी है। उस समय भुखमरी के कारण किसान अपनी भूख मिटाने के कारण अपने बेटे-बेटियों को ही बेच दिया करते थे। आज के युग में लोग गरीबी और भुखमरी से परेशान होकर अपने बेटे-बेटियों को बेच रहे हैं। लेकिन आज के युग में मनुष्य के पास साधनों की कमी नहीं है जो तुलसी युग में होती थी। दूसरे उस युग में गरीबी और भुखमरी के कारण लोग अपने बच्चों को मजबूर होकर बेचते थे लेकिन आज तो कुछ लोग अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए भी अपनी संतानों को बेच रहे हैं।
प्रश्न 3.
‘तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।
उत्तर:
तुलसी के युग की बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं
- लोगों के पास कृषि-योग्य भूमि का न होना
- अच्छे संसाधन का न होना
- परिश्रम न करना
- शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार
- कुशासन से परेशान तंत्र
- मौसम पर आधारित कृषि व्यवस्था।
विद्यार्थी कक्षा में अपने साथियों तथा अध्यापक/अध्यापिका के साथ परिचर्चा करें।
प्रश्न 4.
राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।
उत्तर :
राम ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि राम कौशल्या के साथ-साथ सुमित्रा को भी अपनी माँ मानते थे। वे लक्ष्मण को अपने सगे भाई की तरह प्यार करते थे।
प्रश्न 5.
यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ। दोहा- भरत बाहु
उत्तर :
दोहा – भरत बाहु बल शील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत पुनि-पुनि पवन कुमार ॥
सोरठा – हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।
तुरत बैद तब कीन्ही उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥
कवित्त- खेती न किसान को भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरीन
जीविका विहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहें एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी?’
वेदहूँ पुरान कही, लोकहुँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावर कृपा करी।
दारिद दसानन दबाई दुनी, दुनी दीनबंधु
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी॥
सवैया – धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ जोलहा कहौ कोऊ।
काहूकी बेटी सों बेटा न ष्याल्ब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगी कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ॥
इन्हें भी जानें
चौपाई _चौपाई सम-मात्रिक छंद है यह चार पंक्तियों का होता है जिसके दोनों चरणों में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयोंवाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोकप्रसिद्ध है।
दोहा—दोहा अर्ध-सम-मात्रिक छंद है। इसके सम-चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (।) वर्ण होता है।
सोरठा- दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम-चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम-चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।
कवित्त- यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है। सवैया-चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7 भगण + 2 गुरु (33) के क्रम के होते हैं। यहाँ प्रस्तुत तुलसी का सवैया कई भेदों को मिलाकर बनता है।