NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1 ध्वनि

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ध्वनि NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 1

Class 8 Hindi Chapter 1 ध्वनि Textbook Questions and Answers

कविता से

प्रश्न 1.
कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा ?
उत्तर:
अभी-अभी कवि के जीवन में उल्लास-भरा बसन्त आया है। वसंत के आने से कवि के जीवन में नई ऊर्जा एवं शक्ति का संचार हुआ है। इसीलिए कवि को विश्वास है कि उसका अंत अभी नहीं होगा।

प्रश्न 2.
फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन सा प्रयास करता है?
उत्तर:
कवि अपना कोमलता से ओतप्रोत हाथ अलसाई कलियों पर फेरेगा, जिससे वे जागकर फूल बन जाएँगी। एक नया सवेरा आ जाएगा। कवि अपने प्रभावशाली काव्य की प्रेरणा से इस सक्रियता को अनंत तक बनाए रखने का प्रयास करता

प्रश्न 3.
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि पुष्पों की तन्द्रा और आलस्य को दूर हटाने के लिए अपना स्वप्न के समान कोमल हाथ उन पर फेरेगा। पुष्प अभी कलियों के रूप में हैं। हाथ फेरने से वे खिल जाएँगे और उनका आलस्य दूर हो जाएगा।

कविता से आगे

प्रश्न 1.
वसंत को ऋतुराज क्यों कहा गया है ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ऋतुओं का राजा होने के कारण वसंत को ऋतुराज कहा गया है। इस समय मौसम न अधिक गर्म न अधिक ठंडा होता है। प्रकृति हरी-भरी एवं विविध प्रकार के फूलों से भरी होती है। खेतों में फसलें लहलहाती रहती हैं। जीवन में उल्लास भरा होता है। हर कार्य में उमंग का समावेश हो जाता है।

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प्रश्न 2.
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
वसंत ऋतु में आने वाले त्योहार हैं-वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि एवं होली। वसंत पंचमी के अवसर पर सर्दी कम होने लगती है। लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। साहित्यकार वसंत पंचमी के दिन महाप्राण निराला जी की जयंती भी मनाते हैं।

महाशिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा की जाती है। आर्यसमाजी इसे ‘बोधरात्रि’ के नाम पर भी मनाते हैं क्योंकि इस दिन आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द को आत्मबोध हुआ था।

होली- हमारे देश में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं। इनमें से किसी का संबंध ऐतिहासिक घटना, संस्कृति, समाज अथवा धर्म से होता है और कुछ का सम्बन्ध ऋतु-परिवर्तन से है। यह फागुन मास की पूर्णिमा के दिन बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।

होली का पर्व बसन्त ऋतु में मनाया जाता है। इन दिनों किसानों की फसलें पक जाती हैं। वे इन फसलों को देखकर झूम उठते हैं। प्रकृति के अंग-अंग में निखार आ जाता है। सर्दी समाप्त हो जाती है। मनुष्य के शरीर में चुस्ती एवं स्फूर्ति आ जाती है।

होली का संबंध एक पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप राजा स्वयं को ईश्वर मानता था। वह चाहता था कि लोग उसकी पूजा करे, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर-भक्त था। वह राजा की पूजा नहीं करता था। हिरण्यकश्यप ने उसे तरह-तरह से दण्डित किया। पहाड़ से गिराया, लेकिन ईश्वर ने उसे बचा लिया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। भाई के कहने पर होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई। इस घटना की याद में प्रतिवर्ष रात को होली जलाई जाती है।

इस तिथि को श्रीकृष्ण ने ‘पूतना’ नामक राक्षसी का वध किया था। इस खुशी में ब्रजवासियों ने रंग खेला और रास-रीला का उत्सव मनाया था।

होली के अगले दिन धुलेंडी होती है। इसी दिन प्रातःकाल से ही बच्चे, बूढ़े, वयस्क टोलियाँ बनाकर निकलते हैं, हँसते-गाते-नाच करते हुए रंग, गुलाल, अबीर एक-दूसरे को लगाते हैं। पानी में रंग घोलकर, पिचकारियों में भरकर डालते हैं। ऐसा करते हुए छोटे-बड़े, अमीर-गरीब में ऊँच-नीच का अन्तर समाप्त हो जाता है।

दोपहर तक यह त्योहार समाप्त हो जाता है। लोग नहा-धोकर नए वस्त्र पहनकर सायंकाल मेला देखने जाते हैं। हास्य-रस कवि-सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। वृंदावन की होली विशेष रूप से देखने वाली होती है।

आजकल हर त्योहार में कोई न कोई बुराई आती जा रही है। होली मनाने के ढंग में भी अपवित्रता आ गई है। लोग कीचड़, तारकोल एक-दूसरे पर लगाते हैं जिससे झगड़े भी हो जाते हैं। शराब पीकर लोग अश्लील हरकतें करते हैं।

होली रंगों का और उल्लास का पर्व है। हमें इसे उल्लास और पवित्रता से मनाना चाहिए। आपसी मतभेद को भुलाकर . एकता और प्रेम से मनाना चाहिए।

प्रश्न 3.
“ऋतु-परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”-इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
ऋतु-परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भयंकर गर्मी में पसीने से बेहाल होकर सब परेशान रहते हैं। विजली चली जाए फिर तो मुसीबत ही हो जाती है। भयंकर ठंड हमारे कार्यों को बहुत प्रभावित करती है। घना कोहरा सभी वाहनों को देर से चलने पर मजबूर कर देता है। वर्षा ऋतु आने पर फसलों को नया जीवन मिल जाता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था संतुलित वर्षा पर ही निर्भर है। अधिक वर्षा होने पर बाढ़ भी आती है जो जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। इस प्रकार सभी ऋतुएँ जीवन को प्रभावित करती हैं।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1.
कविता की निम्नलिखित पंक्तियाँ बताए कि इनमें किस ऋतु का वर्णन है ?
फूटे हैं आमों में बौर
भौंर वन-वन टूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर
सभी बंधन छूटे हैं।
उत्तर:
इस कविता की पंक्तियों में ‘वसंत ऋतु’ का वर्णन है। आमों में बौर इसी ऋतु में आते हैं और इसी ऋतु में होली मनाई जाती है।

प्रश्न 2.
स्वप्न भरे कोमल-कोमल हाथों को अलसाई कलियों पर फेरते हुए कवि कलियों को प्रभात के आने का संदेश देता है, उन्हें जगाना चाहता है और खुशी-खुशी अपने जीवन के अमृत से उन्हें सींचकर हरा-भरा करना चाहता है। फूलों-पौधों के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे ?
उत्तर:
फूलों-पौधों के लिए हम ये काम करना चाहेंगे-

  1. फूलों और पौधों में से खरपतवार साफ करेंगे।
  2. उनमें खाद डालेंगे।
  3. पानी से सींचेगे। उन्हें मुरझाने नहीं देंगे।
  4. किसी को फूल या पत्ती नहीं तोड़ने देंगे।
  5. यह भी ध्यान रखेंगे कि हानिकारक कीट फूलों और पौधों को नुकसान न पहुँचाएँ।

प्रश्न 3.
कवि अपनी कविता में एक कल्पनाशील कार्य की बात बता रहा है। अनुमान कीजिए और लिखिए कि उसके बताए कार्यों का अन्य किन-किन संदर्भो से संबंध जुड़ सकता है ? जैसे नन्हे-मुन्ने बालक को माँ जगा रही हो..।
उत्तर:
माँ नन्हे-मुन्ने बालक को जगाने के लिए प्यार से हाथ फेरती है। पौधों से प्यार करने वाला व्यक्ति भी उसी प्रकार अपना स्नेह भरा हाथ फेरता है, उन्हें सींचकर हरा-भरा बनाता है। खिलते हुए फूलों को देखकर प्रसन्न होता है।

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भाषा की बात

1. ‘हरे-हरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे’ ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द-युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ ‘पात’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एक वचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है-“तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थों में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है। कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है, जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं; जैसे-मन का, मनका।

ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निम्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-बातों-बातों में, रह-रहकर, लाल-लाल, सुबह-सुबह, रातों-रात, घड़ी-घड़ी।

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
[1. पीर-पैगम्बर, 2. पीर-पीड़ा]
कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
उहि खाए बौराय जग, यहि पाय बौराय ॥
[1. कनक-सोना, 2. कनक-धतूरा]

वाक्य प्रयोग-

बातों-बातों में – मुझे बातों-बातों में पता चल गया कि सुमेर उधार माँगने के लिए आया है।
रह-रहकर – माँ को रह-रहकर अपने बेटे की याद परेशान कर रही थी।
लाल-लाल – सब्जी वाले की टोकरी लाल-लाल टमाटरों से भरी हुई थी।
सुबह-सुबह – सुबह-सुबह तैयार होकर मेरे साथ बाजार चलना।
रातों-रात – रातों-रात काम में लगा रहा तब जाकर सारा काम पूरा हो सका।
घड़ी-घड़ी – घड़ी-घड़ी उठकर उमा सड़क की ओर देखती है कि बच्चे स्कूल से आए या नहीं।

2. ‘कोमल गात, मृदुल वसंत हरे-हरे ये पात’
विशेषण जिस संज्ञा (या सर्वनाम) की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं। ऊपर दिए वाक्य वाक्यांशों में गात, वसंत और पात शब्द विशेष्य हैं, क्योंकि इनकी विशेषता (विशेषण) क्रमशः कोमल, मृदुल और हरे-हरे शब्द बता रहे हैं।

हिन्दी विशेषणों के सामान्यतया चार प्रकार माने गए हैं-गुणवाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण और सार्वनामिक विशेषण।

कुछ करने को

1. वसंत पर अनेक सुंदर कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए।
2. शब्दकोश में वसंत’ शब्द का अर्थ देखिए।

वसंत पर कविताएँ

अश्विन गाँधी ने ‘गीत वसंत के’ कविता में वासंती प्रभाव को कुछ इस प्रकार चित्रित किया है-

खाली हाथ आए
और खाली ही जाएँगे
दे कर इस मौसम को
गीत वसंत के।

लम्बे सफर में
कठिन डगर में
मिलें सभी को
खिलें सभी पर

शाम सुरमई
सुबह सिंदूरी

सुखमय हों सभी छोर
फैले अनंत के
दे कर इस मौसम को-
गीत वसंत के।

चहकते पंछी
महकते गुलशन
भँवरों की गुनगुन
दूब के आँगन

उमंग का आँचल
उम्मीद का सम्बल
पूरे हों सपने-
आदि से अंत के
देकर इस मौसम को-
गीत वसंत के।

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वासंती दोहे

रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

वसंत द्वारे है खड़ा, मधुर-मधुर मुस्कान।
साँसों में सौरभ घुला, जग भर से अनजान ॥
चिहुँक रही सुनसान में, सुधियों की हर डाल।
भूल न पाया आज तक, सुमन-छुअन वह भाल ॥
जगा चाँद है देर तक आज नदी के कूल।
लगता फिर से गड़ गया, उर में तीखा शूल ॥
मौसम बना बहेलिया, जीना मरना खेल।
घायल पाखी हो गए, ऐसी लगी गुलेल ॥
अँजुरी खाली रह गई, बिखर गए सब फूल ।
सबके बिन मधुमास में, उपवन लगते शूल ॥

शब्दकोश में वसंत के अर्थ-

वर्ष की छह ऋतुओं में से एक ऋतु।
– फूलों का गुच्छा
– उन्नति काल
– सौभाग्य काल
– एक राग का नाम
– छह रागों में से एक।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ध्वनि कविता के कवि कौन हैं ?
(क) निर्मल वर्मा
(ख) रामधारी सिंह दिनकर
(ग) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
(घ) सूरदास
उत्तर:
(ग) सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

प्रश्न 2.
कवि क्यों कहता है कि मेरा अंत अभी नहीं होगा ?
(क) कवि अभी बच्चा है
(ख) कवि ने मौत पर विजय प्राप्त करली है ?
(ग) कवि को अभी बहत कार्य करने है।
(घ) कवि के जीवन में अभी-अभी वसंत आया है ?
उत्तर:
(घ) कवि के जीवन में अभी-अभी वसंत आया है ?

प्रश्न 3.
हरे-हरे पात कितका प्रतीक है?
(क) जीवन की खुशियों का
(ख) हरियाली का
(ग) जीवन के वैभव का
(घ) घन संपत्ति का
उत्तर:
(क) जीवन की खुशियों का

प्रश्न 4.
कवि फूल-फूल से क्या खींच लेना चाहता है ?
(क) शहद
(ख) तंद्रालस लालसा
(ग) प्राण
(घ) जल
उत्तर:
(ख) तंद्रालस लालसा

प्रश्न 5.
कवि उन फूलों को किससे सींचना चाहता है ?
(क) जल से
(ख) धन से
(ग) भावनाओं से
(घ) नव जीवन के अमृत से
उत्तर:
(घ) नव जीवन के अमृत से

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प्रश्न 6.
‘प्रत्यूष’ शब्द का क्या अर्थ है ।
(क) प्रयोग
(ख) प्रतिदिन
(ग) प्रातःकाल
(घ) सायंकाल
उत्तर:
(ग) प्रातःकाल

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़ो और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दो-

(क) अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अन्त ।

हरे-भरे ये पात
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अभी न होगा मेरा अन्त’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
मुझे अभी बहुत कुछ करना है। मुझमें अभी बहुत सारा रचनात्मक कार्य करने की शक्ति मौजूद है।

प्रश्न 2.
‘मेरे वन में मृदुल वसंत’ का क्या आशय है ?
उत्तर:
जैसे वन में मृदुल वसंत आता है, उसी प्रकार मेरे जीवन में भी नई-नई आशाओं का संचार हुआ है।

प्रश्न 3.
कवि कलियों पर किस प्रकार का हाथ फेरेगा ?
उत्तर:
कलियाँ अधनींदी अवस्था में हैं। कोमलता उनका सबसे बड़ा गुण है। कवि का हाथ उतना ही कोमल है जितने कोमल किसी के सपने होते हैं।

प्रश्न 4.
‘निद्रित कलियों’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
‘निद्रित कलियों’ से तात्पर्य वह युवा वर्ग है जिसमें जागृति नहीं है, जो अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं है।

प्रश्न 5.
कवि कैसा सवेरा जगाना चाहता है ?
उत्तर:
कवि एक मनोहर सवेरा जगाना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘अभी-अभी ही’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने ‘अभी-अभी’ के साथ ‘ही’ का प्रयोग करके उसे तात्कालिक वर्तमान से जोड़ दिया है।

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(ख) पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

प्रश्न 1.
प्रत्येक पुष्प से कवि क्या खींच लेगा ?
उत्तर:
प्रत्येक पुष्प से कवि तन्द्रा में डूबे हुए आलस्य को खींच कर उसे सक्रिय कर देगा।

प्रश्न 2.
प्रत्येक पुष्प का आलस्य दूर करने के बाद कवि क्या करेगा ?
उत्तर:
केवल आलस्य दूर करना ही कवि का काम नहीं है। वह साथ ही साथ उसे नए जीवन के अमृत से भी सींच देगा ताकि उसमें नया जोश भर जाए।

प्रश्न 3.
‘तन्द्रालस पुष्प’ कौन हो सकता है ?
उत्तर:
भारत का युवा वर्ग ‘तन्द्रालस पुष्प’ हो सकता है।

प्रश्न 4.
कवि कौन-सा द्वार दिखाने की बात करता है ?
उत्तर:
कवि अमरता का द्वार दिखाने की बात करता है।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसंत-
अभी न होगा मेरा अंत।
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्युष मनोहर।

प्रसंग – उपर्युक्त पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘ध्वनि’ कविता से उद्धृत हैं। निराला जी ने कविता में नए प्रयोग किए। आलोचकों को लगा कि इन नए प्रयोगों से कवि के ‘साहित्यकार-जीवन’ का अन्त हो जाएगा। निराला जी ने उन भ्रांत धारणाओं का विरोध किया है।

व्याख्या – मेरे काव्य-जीवन का यह उत्कर्ष काल है। जो यह समझ बैठे हैं कि मेरे जीवन का अन्त होने वाला है, वे इस भ्रांतिपूर्ण विचार से स्वयं को मुक्त कर लें। ऐसा कुछ होने वाला नहीं है; क्योंकि अभी-अभी तो मेरे जीवन का वसन्त आया है। मेरे काव्य को ऊँचाई प्राप्त हुई है। अभी जीवन का प्रत्येक पल हरियाली से भरा हुआ है। उसके हाथों के स्पर्श में प्रेम का पुलक है जिसके सहलाने भर से कलियाँ खिल उठेगी। जीवन में रंग-बिरंगे फूल मुस्कराने लगेंगे। जिनकी चेतना सुप्त है, उन्हें मैं अपने स्पर्श से जाग्रत कर दूंगा। मैं ऐसे सभी युवकों में नई प्रेरणा का संचार कर दूंगा। देश में नए सवेरे का आगमन हो जाएगा।

विशेष-

  1. ‘अभी-अभी ही’ पदों के द्वारा कवि ने वर्तमान क्षण की पुष्टि की है। ‘ही’ का समावेश करके कवि ने और तीव्रता का समावेश कर दिया है।
  2. ‘कलियाँ, कोमल’ में ‘क’ व्यंजन की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
  3. ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘वन’ इन पंक्तियों में जीवन का प्रतीक है। ‘वंसत’ जीवन के उत्कर्ष का प्रतीक है।

2. पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं,
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत-
अभी न होगा मेरा अंत।

प्रसंग- उपर्युक्त पंक्तियाँ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘ध्वनि’ कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि तंद्रा में डूबी पीढ़ी को सचेत करने का निश्चय प्रकट करता है।

व्याख्या- कवि कहता है कि मैं प्रत्येक पुष्प से उसके आलस्य को खींचकर दूर कर दूंगा। जो युवाशक्ति पूरे उपवन की शोभा है, उसे जाग्रत कर सक्रिय कर दूंगा। उसके जीवन में नई चेतना का अमृत भर दूंगा। आलस्य का परित्याग ही उन्हें अमर जीवन की ओर ले जाएगा। अभी मेरा अन्त नहीं होगा। अभी तो मुझे इस संसार में बहुत कुछ करना है।
कवि प्रत्येक पल को वसंत की ताजगी के साथ जीना चाहता है।

विशेष-

  1. ‘सहर्ष सींच’ में अनुप्रास अलंकार है।
  2. ‘पुष्प-पुष्प’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  3. ‘द्वार दिखा दूंगा’ में अनुप्रास अलंकार है। कवि का ‘द्वार दिखा दूंगा’ से तात्पर्य सही दिशाबोध कराना है।

ध्वनि Summary

ध्वनि पाठ का सार

‘ध्वनि’ कविता में निराला जी ने कविता के प्रति मानवीय संवेदना को उद्घाटित किया है तो दूसरी ओर अपने जीवन के वसंत की बात भी की है। कवि कहता है कि अभी तो मेरे जीवन में कोमल वसंत का आगमन हुआ है। मेरे जीवन का अन्त अभी नहीं हो सकता है। हरे-हरे पत्तों पर, डालियों और कलियों पर, कोमल शरीर पर मैं अपना सुखद सपनों से भरा कोमल हाथ फेरूँगा। सोती हुई कलियाँ भी जग जाएँगी। एक नए सवेरे का आगमन हो जाएगा, क्योंकि सोई हुई कलियाँ जागकर फूल के रूप में खिल जाएँगी, प्रत्येक फूल में लालसा छुपी हुई है, मैं उस लालसा को खींच लूँगा। अपने जीवन के अमृत से सबको सींच दूँगा। फिर इन सबको भी सुखों का द्वार दिखा दूंगा। वह द्वार जहाँ मेरे अनन्त परमेश्वर का वास है। मुझे अभी बहुत कुछ करना है। अभी मेरा अन्त नहीं होगा।

शब्दार्थ : मृदुल-कोमल; वन-जंगल; गाल-शरीर; प्रत्यूष-प्रातःकाल; निद्रित-नींद में डूबी हुईं; तंद्रालस-हल्की नींद के आलस्य से भरे हुए; अनंत-ईश्वर; लालसा-कुछ पाने की इच्छा।

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