NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 6 दिये जल उठे

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बोध-प्रश्न

(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न
1. किस कारण से प्रेरित हो स्थानीय कलेक्टर ने पटेल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया?
2. जज को पटेल की सज़ा ले लिए आठ लाइन के फैसले को लिखने में डेढ़ घंटा क्यों लगा? स्पष्ट करें।
3. “मैं चलता हूँ। अब आपकी बारी है।”—यहाँ पटेल के कथन का आशय उधृत पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
4. “इनसे आप लोग त्याग और हिम्मत सीखें”–गांधी जी ने यह किसके लिए और किस संदर्भ में कहा?
5. पाठ द्वारा यह कैसे सिद्ध होता है कि कैसी भी कठिन परिस्थिति हो उसको सामना तात्कालिक सूझबूझ और | आपसी मेलजोल से किया जा सकता है। अपने शब्दों में लिखिए।
6. महिसागर नदी के दोनों किनारों पर कैसा दृश्य उपस्थित था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
7. “यह धर्मयात्रा है। चलकर पूरी करूंगा”। गांधी जी के इस कथन द्वारा उनके किस चारित्रिक गुण का परिचय प्राप्त होता है?
8. गांधी जी को समझनेवाले वरिष्ठ अधिकारी इस बात से सहमत नहीं थे कि गांधी जी कोई काम अचानक और चुपके से करेंगे। फिर भी उन्होंने किस डर से और क्या एहतियाती कदम उठाए?
9. गांधी जी के पार उतरने पर भी लोग नदी तट पर क्यों खड़े रहे?
उत्तर
1. दांडी-कूच की तैयारी के सिलसिले में वल्लभभाई पटेल 7 मार्च को रास पहुँचे थे। उन्हें वहाँ भाषण नहीं देना था। लेकिन लोगों ने सरदार को दो शब्द भाषण में बोलने के लिए कहा। उन्होंने लोगों से सत्याग्रह के लिए तैयार होने के लिए कहा। इस कार्य को शासन के विरुद्ध माना गया। यही कारण था कि कलेक्टर ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया। पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया।

2. सरदार पटेल को निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने के आरोप में न्यायालय में आरोपी बनाया गया था। वल्लभभाई ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया। अब जज महोदय दुविधा में पड़ गए। उनके सामने कोई स्पष्ट कानून नहीं था। न ही स्पष्ट स्थितियाँ थीं। इसलिए उन्हें आठ पंक्तियों का फैसला लिखने में डेढ़ घंटे का समय लग गया।

3. सरदार पटेल को जब सजा सुना दी गई तो उन्हें अहमदाबाद साबरमती जेल ले जाया गया। साबरमती आश्रम में गांधी जी को पटेल की गिरफ्तारी, उनकी सज़ा और साबरमती जेल ले जाए जाने की सूचना थी। गांधी जी इस गिरफ्तारी से बहुत क्रोधित थे। उन्होने दांडी कूच की तारीख बदलने का निर्णय ले लिया। आश्रम में एक-एक व्यक्ति यह हिसाब लगा रहा था कि मोटर कार द्वारा बोरसद से साबरमती जेल पहुँचने में कितना समय लगेगा। जेल का रास्ता आश्रम के सामने से ही होकर जाता था। आश्रमवासी पटेल की एक झलक पाना चाहते थे। समय का अनुमान लगाकर गांधी जी स्वयं आश्रम से बाहर निकल आए। पीछे-पीछे सभी आश्रमवासी आकर सड़क के किनारे खड़े हो गए। लोगों का अनुमान था कि गाड़ी नहीं रुकेगी परंतु उनके रोब के कारण गाड़ी रुकी। तब पटेल ने गांधी जी से कहा कि वे चलते हैं। अब उनकी बारी हैं। उन्होंने तो आंदोलन का प्रारंभ कर दिया है। अब जन जागृति फैलाने की उनकी बारी है। यह पंक्ति का प्रतीकार्थ है।

4. रास में आयोजित गाँधी जी की सभा में दरबार गोपालदास और रविशंकर महाराज भी उपस्थित थे। वे बड़े रियासतदार होते हुए भी रास में रहकर त्यागमय जीवन जी रहे थे। अत: गाँधी जी ने उनके संदर्भ में लोगों से कहा-दरबार समुदाय के ये लोग त्यागी और हिम्मती हैं। आप इनसे त्याग और हिम्मत की शिक्षा लें।

5. स्वतंत्रता संग्राम किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं था। विदेशी शासन के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। पटेल जी के लिए कानून के दायरे में रह कर काम करना असंभव था। कैसी भी कठिन परिस्थिति हो भारतीयों को उनका सामना करना आता था। वह आपसी एकता से कार्य करने में निपुण थे। एक के पीछे एक पंक्ति बनाकर खड़े हो जाते थे और आशा के दीपक जलाने लगते थे। विदेशी शासन थोड़ी-सी आवाज बुलंद करनेवालों को जेल में डाल दिया करते थे परंतु पटेल की दृढ़ संकल्प शक्ति के सामने उनकी तकनीक सफल नहीं हुई। पटेल के रोब से पुलिसवालों को मोटर-गाड़ी रोकनी पड़ी थी। गांधी जी की आवाज़ ने सोने पर सुहागा का काम किया। देशभर में आजादी की लहर दौड़ गई। गांधी जी के मिलन और सूझबूझ ने कठिन परिस्थितियों पर काबू पाकर लोगों के हृदय में स्थान बना लिया।

6. महिसागर नदी के दोनों किनारों पर अभूतपूर्व उत्साह था। हजारों लोग अपने-अपने हाथों में दिये लेकर उपस्थित थे। सत्याग्रहियों का समूह नावों पर सवार था। नाव पर चढ़ने से पहले गाँधी जी तथा सत्याग्रही घुटनों-घुटनों पानी में चलकर आए थे। नदी के दूसरे तट पर भी यही उत्साहमय दृश्य था। हजारों की भीड़ महात्मा गाँधी, सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू की जय के नारे लगा रही थी। ऐसा लगता था मानो रात में भी मेला लगा हुआ हो।

7. यह धर्मयात्रा चलकर पूरी करूंगा। गांधी जी का यह कथन अटूट साहस, उत्साह और तीव्र लगन का परिचय देता है। गांधी जी मानते हैं कि धर्म मार्ग सत्य व अहिंसा का मार्ग है। मन, वचन, कर्म की पवित्रता अनिवार्य है। ऐसी यात्रा उनकी अंतिम यात्रा है। इसे उन्होंने धर्मयात्रा का नाम दिया है। ऐसी यात्रा के लिए वे वाहनों का प्रयोग नहीं करना चाहते थे। धर्मयात्रा में हवाई जहाज, मोटर या बैलगाड़ी में जाने वाले को लाभ नहीं मिलता। यात्रा में कष्ट सहना पड़ता है। लोगों का दर्द समझना पड़ता है। तभी यात्रा सफल होती है। गांधी जी किसी भी तरह विदेशी शासन के राक्षसी राज के अनुसार काम करने के लिए तैयार नहीं थे।

8. गांधी जी की दृढ़ निष्ठा, ईमानदारी और चारित्रिक दृढ़ता से बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी भी प्रभावित थे। वे जानते थे कि अगर गांधी नमक कानून तोड़ेंगे तो सबके सामने कहकर तोड़ेंगे। वे चोरी और चुपके-से कोई काम नहीं करेंगे। फिर भी प्रशासन के कुछ लोगों को उन पर संदेह था। दूसरे, उनके मन में आशंका थी कि गांधी जी के न चाहते हुए भी कानून को उल्लंघन हो गया तो व्यर्थ में संकट खड़ा हो जाएगा। इसलिए सावधानी के लिए उन्होंने नदी के तट पर जमा नमक के भंडार हटवा दिए और उन्हें नष्ट करवा डाला।

9. गांधी जी के पार उतरने पर भी लोग नदी तट पर इसलिए खड़े रहे क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि अभी और कुछ लोग रात में नदी पार करेंगे क्योंकि सत्याग्रहियों को भी उस पार जाना था। लोगों की यह भावना विपरीत परिस्थिति में हिम्मत व साहस से डटे रहने का परिचय देती है।

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