Class 6 Hindi Malhar Chapter 10 Pariksha Question Answer परीक्षा
परीक्षा Question Answer Class 6
कक्षा 6 हिंदी पाठ 10 परीक्षा कविता के प्रश्न उत्तर – Pariksha Class 6 Question Answer
मेरी समझ से
आइए, अब हम कहानी ‘परीक्षा’ के बारे में कुछ चर्चा कर लेते हैं।
(क) आपकी समझ से नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन सा है? उसके सामने तारा (P) बनाइए-
प्रश्न 1.
महाराज ने दीवान को ही उनका उत्तराधिकारी चुनने का कार्य उनके किस गुण के कारण ‘सौंपा ?
(क) सादगी
(ख) उदारता
(ग) बल
(घ) नीतिकुशलता
उत्तर:
(घ) नीतिकुशलता
प्रश्न 2.
दीवान साहब द्वारा नौकरी छोड़ने के निश्चय का क्या कारण था?
(क) परमात्मा की याद
(ख) राज-काज संभालने योग्य शक्ति न रहना
(ग) बदनामी का भय
(घ) चालीस वर्ष की नौकरी पूरा हो जाना
उत्तर:
(ख) राज-काज संभालने योग्य शक्ति न रहना
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर:
हमने ये उत्तर इसलिए चुने क्योंकि यही सही विकल्प थे।
- नया दीवान कोई नीतिकुशल व्यक्ति ही चुन सकता था। सुजानसिंह ने नए दीवान के चुनाव में अपनी नीतिकुशलता का परिचय भी दिया।
- दीवान साहब द्वारा नौकरी छोड़ने का निश्चय ढलती उम्र में राज-काज संभालने की शक्ति का न रहना अधिक उपयुक्त उत्तर है। वैसे उन्हें परमात्मा की याद भी आई, पर वे उसे नौकरी में रहते हुए भी कर सकते थे।
शीर्षक
(क) आपने जो कहानी पढ़ी है, इसका नाम प्रेमचंद ने ‘परीक्षा’ रखा है। अपने समूह में चर्चा करके लिखिए कि उन्होंने इस कहानी का यह नाम क्यों दिया होगा? अपने उत्तर के कारण भी लिखिए ।
उत्तर:
प्रेमचंद ने अपनी इस कहानी का नाम ‘परीक्षा’ इसलिए दिया होगा, क्योंकि इसमें नए दीवान की परीक्षा को ही कहानी का केंद्रबिंदु बनाया गया है।
(ख) यदि आपको इस कहानी को कोई अन्य नाम देना हो तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा, यह भी बताइए।
उत्तर:
यदि हमें इस कहानी का कोई अन्य शीर्षक देना हो तो हम शीर्षक देंगे-
‘गरीबों का सच्चा सेवक’
क्यों? – जो व्यक्ति गरीबों की सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म मानता है, वही व्यक्ति राज-काज करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति होता है उसी में उदारता एवं आत्मबल का निवास होता है।
पंक्तियों पर चर्चा
कहानी में से चुनकर यहाँ कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और अपनी लेखन पुस्तिका में लिखिए। ” इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी, जिसके हृदय में दया हो और साथ-साथ आत्मबल । हृदय वह जो उदार हो, आत्मबल वह जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे। ऐसे गुणवाले संसार में कम हैं और जो हैं, वे कीर्ति और मान के शिखर पर बैठे हुए हैं। ”
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का जो अर्थ हमारी समझ में आया, वह है-
राज-काज वही व्यक्ति कुशलतापूर्वक संचालित कर सकता है जिसके हृदय में दया के साथ आत्मबल भी हो। बिना आत्मबल के व्यक्ति दयालु होकर भी इच्छित काम नहीं कर पाता। दया का काम आत्मबल से ही पूरा होता है। ऐसे व्यक्ति में उदारता भी अपेक्षित है। आत्मबल संपन्न व्यक्ति ही किसी भी मुसीबत का सामना वीरता और दृढ़ता के साथ कर सकता है।
यद्यपि इन गुणों से संपन्न व्यक्ति इस संसार में बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, पर जो ऐसे हैं, मान-सम्मान के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित होते हैं। वे ही उच्च पद के सच्चे अधिकारी हैं।
सोच-विचार के लिए
कहानी को एक बार फिर से पढ़िए, निम्नलिखित के बारे में पता लगाइए और लिखिए-
(क) नौकरी की चाह में आए लोगों ने नौकरी पाने के लिए कौन-कौन से प्रयत्न किए?
उत्तर:
नौकरी की चाह में आए लोगों ने दीवान की नौकरी पाने के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किए-
- तरह-तरह की वेशभूषा धारण करके स्वयं को विशिष्ट दर्शाने के प्रयत्न किए।
- स्वयं को ग्रेजुएट बताकर स्वयं को उच्च शिक्षित बताया।
- देर तक सोने वाले व्यक्ति ने भी यहाँ आकर स्वयं को प्रातःकाल बाग में सैर करने का अभ्यासी दिखाने का प्रयत्न किया।
- घर में नौकरों हुक्म चलाने वाले उम्मीदवार यहाँ नौकरों से भी ‘आप’ कहकर बात करते थे।
- सभी उम्मीदवार स्वयं को नम्रता और सदाचार का देवता दर्शाने का प्रयत्न कर रहे थे।
(ख) “उसे किसान की सूरत देखते ही सब बातें ज्ञात हो गई।” खिलाड़ी को कौन-कौन-सी बातें पता चल गई ?
उत्तर:
खिलाड़ी को निम्नलिखित बातें पता चल गईं-
- इस किसान की आवाज तो सुजानसिंह से मिलती है।
- इसका चेहरा-मोहरा भी सुजानसिंह जैसा है।
- किसान ने जब कहा नारायण चाहेंगे तो दीवानी आपको ही मिलेगी तब भी खिलाड़ी सच्चाई भाँप गया।
(ग) ” मगर उन आँखों में सत्कार था, इन आँखों में ईर्ष्या ।” किनकी आँखों में सत्कार था और किनकी आँखों में ईर्ष्या थी? क्यों?
उत्तर:
- रियासत के कर्मचारियों और रईसों की आँखों में नए दीवान जानकीनाथ के लिए सत्कार था। अब वे उनके उच्च अधिकारी थे।
- दीवान पद के उम्मीदवारों की आँखों में ईर्ष्या थी क्योंकि वे इस पद की दौड़ में पिछड़ गए थे। उनकी उम्मीद मिट्टी में मिल गई थी।
खोजबीन
कहानी में से वे वाक्य खोजकर लिखिए जिनसे पता चलता है कि-
(क) शायद युवक बूढ़े किसान की असलियत पहचान गया था।
उत्तर:
संबंधित वाक्य युवक ने किसान की तरफ गौर से देखा। उसके मन में संदेह हुआ, क्या यह सुजानसिंह तो नहीं है? आवाज मिलती है, चेहरा-मोहरा भी वही किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। शायद उसके दिल के संदेह को भाँप गया था। मुस्कराकर बोला- “गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है। ”
(ख) नौकरी के लिए आए लोग किसी तरह बस नौकरी पा लेना चाहते थे।
उत्तर:
- नौकरी के लिए आए लोग अपनी आदतों के विपरीत काम करके भी नौकरी पा लेता चाहते थे। वे प्रातः काल जल्दी उठते थे, बगीचे में टहलते थे। जबकि घर में नौ बजे तक सोते रहते थे।
- नौकरों के प्रति वे स्वयं को बदलकर दिखा रहे थे।
- बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ने में डूबे रहने का स्वांग करके स्वयं को विद्वान, नम्र व सदाचारी दिखाने की कोशिश में लगे रहते थे।
- बस ये चाहते थे कि किसी-न-किसी प्रकार उन्हें यह नौकरी मिल जाए ।
कहानी की रचना
“लोग पसीने से तर हो गए। खून की गरमी आँख और चेहरे से झलक रही थी । ”
इन वाक्यों को पढ़कर आँखों के सामने थकान से चूर खिलाड़ियों का चित्र दिखाई देने लगता है। यह चित्रात्मक भाषा है। ध्यान देंगें तो इस पाठ में ऐसी और भी अनेक विशेष बातें आपको दिखाई देंगी। कहानी को एक बार ध्यान से पढ़िए। आपको इस कहानी में और कौन-कौन-सी विशेष बातें दिखाई दे रही हैं? अपने समूह में मिलकर उनकी सूची बनाइए ।
उत्तर:
कहानी की अन्य विशेष बातें-
(i) विज्ञापन की भाषा का स्वरूप मिलता है। देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की जरूरत है जो सज्जन अपने को इस पद के योग्य समझें, वे वर्तमान सरकार सुजानसिंह की सेवा में उपस्थित हों। यह जरूरी नहीं है। कि वे ग्रेजुएट हों, मगर हृष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है, मंदाग्नि के मरीज को यहाँ तक कष्ट उठाने की कोई जरूरत नहीं। एक महीने तक उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार की देखभाल की जाएगी। विद्या का कम, परंतु कर्तव्य का अधिक विचार किया जायेगा । जो महाशय इस परीक्षा में पूरे उतरेंगे, वे इस उच्च पद पर सुशोभित होंगे। ”
(ii) उम्मीदवारों के नाम के स्थान पर ‘अ’, ‘द’, ‘ज’ अक्षरों का प्रयोग किया गया है।
(iii) भाषा सामान्य बोलचाल की है। तत्सम-तद्भव तथा देशज व विदेशी शब्दों का सहजता से प्रयोग हुआ है।
(iv) अनेक मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है- -दाग लगना, बेदम होना, लक्ष्मी की कृपा होना।
(v) सूक्ति का भी प्रयोग है – ” गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है। ”
समस्या और समाधान
इस कहानी में कुछ समस्याएँ हैं और उसके समाधान भी हैं। कहानी को एक बार फिर से पढ़कर बताइए कि-
(क) महाराज के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने इसका क्या समाधान खोजा?
उत्तर:
महाराज के सामने यह समस्या थी कि देवगढ़ रियासत का नया दीवान किसे बनाया जाए। इसका समाधान सुजानसिंह ने उम्मीदवारों की परीक्षा लेकर और योग्य दीवान चुनकर खोजा।
(ख) दीवान के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने इसका क्या समाधान खोजा?
उत्तर:
दीवान के सामने यह समस्या थी कि वह कौन सा तरीका अपनाया जाए कि दीवान पद के लिए योग्य ढूँढा जा सके। दीवान ने किसान का वेश धारण करके, गाड़ी कीचड़ में उतार कर योग्य उम्मीदवार ढूँढ लिया।
(ग) नौकरी के लिए आए लोगों के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने इसका क्या समाधान खोजा?
उत्तर:
नौकरी के लिए आए उम्मीदवारों के सामने यह समस्या थी कि वे किस उपाय से स्वयं को इस पद के लिए योग्य साबित कर सके। उन्होंने इसके लिए हॉकी का मैच खेला। वे अपना खेल कौशल दिखाना चाहते थे। पर वे इससे अपनी समस्या का समाधान नहीं खोज पाए। हाँ, पं. जानकीनाथ अपने व्यवहार से सफल हो गए।
मन के भाव
“स्वार्थ था, मद था, मगर उदारता और वात्सल्य का नाम भी न था । ”
इस वाक्य में कुछ शब्दों के नीचे रेखा खिंची हुई है। ये सभी नाम हैं, लेकिन दिखाई देने वाली वस्तुओ, व्यक्तियों या जगहों के नाम नहीं हैं। ये सभी शब्द मन के भावों के नाम हैं। आप कहानी में से ऐसे ही अन्य नामों को खोजकर नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए।
उत्तर:
ऐसे भावों को भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
अभिनय
कहानी में युवक और किसान की बातचीत संवादों के रूप में दी गई है। यह भी बताया गया है कि उन दोनों ने ये बातें कैसे बोलीं। अपने समूह के साथ मिलकर तैयारी कीजिए और कहानी के इस भाग को कक्षा में अभिनय के द्वारा प्रस्तुत कीजिए । प्रत्येक समूह से अभिनेता या अभिनेत्री कक्षा में सामने आएँगे और एक-एक संवाद अभिनय के साथ बोलकर दिखाएँगे।
उत्तर:
कक्षा में अभिनय के दौरान बोले जाने वाले संवाद :
युवक : क्या मैं तुम्हारी मदद करूँ?
किसान : हजूर मैं आपसे मदद के लिए कैसे कहूँ?
युवक : मालूम होता है तुम यहाँ बड़ी देर से फँसे हो?
किसान : हाँ, देर तो बहुत हो गई है।
युवक : अच्छा तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को साधो मैं पहियों को धकेलता हूँ।
किसान : आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। (गाड़ी ऊपर चढ़ जाती है)
महाराज! आपने मुझे उबार लिया, वर्ना मुझे सारी रात यहीं बैठना पड़ता ।
युवक : कोई बात नहीं। आपकी सहायता करना मेरा धर्म है।
किसान : भगवान ने चाहा तो आपको ही दीवानी मिलेगी।
विपरीतार्थक शब्द
“विद्या का कम, परंतु कर्तव्य का अधिक विचार किया जाएगा। ”
‘कम’ का विपरीत अर्थ देने वाला शब्द है ‘अधिक’। इसी प्रकार के कुछ विपरीतार्थक शब्द नीचे दिए गए हैं लेकिन वे आमने-सामने नहीं हैं। रेखाएँ खींचकर विपरीतार्थक शब्दों के सही जोड़े बनाइए-
स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
1. आना | 1. निर्दयी |
2. गुण | 2. निराशा |
3. आदर | 3. जीत |
4. स्वस्थ | 4. अवगुण |
5. कम | 5. अस्वस्थ |
6. दयालु | 6. अधिक |
7. योग्य | 7. जाना |
8. हार | 8. अयोग्य |
9. आशा | 9. अनादर |
उत्तर:
1. आना × जाना,
2. गुण × अवगुण,
3. आदर × अनादर,
4. स्वस्थ × अस्वस्थ,
5. कम × अधिक
6. दयालु × निर्दय
7. योग्य × अयोग्य
8 हार × जीत
9. आशा × निराशा
कहावत
” गहरे पानी में पैठने से ही मोती मिलता है ।”
यह वाक्य एक कहावत है। इसका अर्थ है कि कोशिश करने पर ही सफलता मिलती है। ऐसी ही एक और कहावत है, “जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ ” अर्थात परिश्रम का फल अवश्य मिलता है। कहावतें ऐसे वाक्य होते हैं जिन्हें लोग अपनी बात को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। आपके घर और पास-पड़ोस में भी लोग अनेक कहावतों का उपयोग करते होंगे।
नीचे कुछ कहावतें और उनके भावार्थ दिए गए हैं। आप इन कहावतों को कहानी से जोड़कर अपनी लेखन- पुस्तिका में लिखिए-
1. अधजल गगरी छलकत जाए जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता है, वह उसका दिखावा करता है।
2. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत समय निकल जाने के बाद पछताना व्यर्थ होता है।
3. एक अनार सौ बीमार कोई ऐसी एक चीज जिसको चाहने वाले अनेक हों।
4. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं हैं जो अधिक बढ़-चढ़कर बोलते हैं, वे काम नहीं करते हैं।
5. जहाँ चाह, वहाँ राह जब किसी काम को करने की इच्छा होती है, तो उसका साधन भी मिल जाता है। (संकेत – विज्ञापन में तो एक नौकरी की बात कही गई थी, लेकिन उम्मीदवार आ गए हजारों इसे कहते हैं – एक अनार सौ बीमार)
उत्तर :
1. नौकरी की परीक्षा देने आए लोग स्वयं को वास्तविकता से बढ़ाकर दिखा रहे थे। लगता था – अधजल गगरी छलकत जाए।
2. जब दीवान के चुनाव में पं. जानकीनाथ बाजी मार ले गए तब उम्मीदवार पछताते रह गए, पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ।
3. दीवान का पद तो एक था पर उम्मीदवार अनेक थे। यह तो ऐसी स्थिति थी कि एक अनार सौ बीमार ।
4. परीक्षा देने आए कई उम्मीदवार बढ़-चढ़ बातें कर रहे थे, पर वे कुछ कर नहीं रहे थे। उनकी हालत तो ऐसी थी कि जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं ।
5. जहाँ चाह होती है, वह काम हो ही जाता है जैसे पंडित जानकीनाथ का काम हो ही गया ।
पाठ से आगे
अनुमान या कल्पना से
(क) “दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकला ”
देश के प्रसिद्ध पत्रों में नौकरी का विज्ञापन किसने निकलवाया होगा? आपको ऐसा क्यों लगता है ?
उत्तर:
देश के प्रसिद्ध पत्रों में नौकरी का विज्ञापन देवगढ़ रियासत के दीवान सुजानसिंह ने ही निकलवाया होगा। हमें ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि राजा ने नया दीवान चुनने के दायित्व सुजानसिंह को ही सौंपा था। सुजानसिंह ने उसी दायित्व को पूरा करने के लिए विज्ञापन निकलवाया होगा।
(ख) “इस विज्ञापन ने सारे मुल्क में तहलका मचा दिया । ”
विज्ञापन ने पूरे देश में तहलका क्यों मचा दिया होगा ?
उत्तर:
इस विज्ञापन ने पूरे देश में तहलका इसलिए मचा दिया होगा क्योंकि दीवान का पद कोई मामूली पद नहीं था। अनेक ‘लोग उसे पाना चाहते थे। सभी अपना भाग्य अजमाना चाहते थे। यह विज्ञापन उन्हें सुनहरी अवसर दे रहा था।
विज्ञापन
” दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध पत्रों में यह विज्ञापन निकला कि देवगढ़ के लिए एक सुयोग्य दीवान की जरूरत है । ”
(क) कहानी में इस विज्ञापन की सामग्री को पढ़िए। इसके बाद अपने समूह में मिलकर इस विज्ञापन को अपनी कल्पना का उपयोग करते हुए बनाइए ।
(संकेत – विज्ञापन बनाने के लिए आप एक चौकोर कागज पर हाशि या बनाइए। इसके बाद इस हाशिए के भीतर के खाली स्थान पर सुंदर लिखाई, चित्रों, रंगों आदि की सहायता से सभी आवश्यक जानकारी लिख दीजिए। आप बिना रंगों या चित्रों के भी विज्ञापन बना सकते हैं।)
(ख) आपने भी अपने आस-पास दीवारों पर, समाचार पत्रों में या पत्रिकाओं में, मोबाइल फोन या दूरदर्शन पर अनेक विज्ञापन देखे होंगे। अपने किसी मनपसंद विज्ञापन को याद कीजिए। आपको वह अच्छा क्यों लगता है ? सोचकर अपने समूह में बताइए । अपने समूह के बिंदुओं को लिख लीजिए ।
उत्तर:
(क-ख) विज्ञापन का नमूना :
(ग) विज्ञापनों से लाभ होते हैं, हानि होती हैं, या दोनों? अपने समूह में चर्चा कीजिए और चर्चा के बिंदु लिखकर कक्षा में साझा कीजिए ।
उत्तर:
विज्ञापन के लाभ : इससे उत्पादकर्ता और उपभोक्ता दोनों का लाभ होता है। उत्पादक का माल अधिक बिकता तथा उपभोक्ता को नए उत्पाद की जानकारी मिल जाती है तथा उसके गुण पता चल जाते हैं।
हानि : प्राय: विज्ञापन उपभोक्ताओं को भ्रमित करते हैं। उनमें दर्शायी चीज की गुणवत्ता कम होती है। उसकी विशेषता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है। कई बार ग्राहक ठगा सा महसूस करता है।
आगे की कहानी
‘परीक्षा’ कहानी जहाँ समाप्त होती हैं, उसके आगे क्या हुआ होगा। आगे की कहानी अपनी कल्पना से बनाइए ।
उत्तर:
परीक्षा कहानी जहाँ समाप्त होती है, उसके आगे क्या हुआ होगा, इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
पं. जानकीनाथ के दीवान बनने पर शेष उम्मीदवार निराश होकर अपने-अपने घर लौट गए होंगे। कुछ उम्मीदवारों ने चुनाव के इस तरीके पर अपना विरोध भी प्रकट किया होगा।
नये दीवान के पद ग्रहण करने के पश्चात् सुजानसिंह सेवानिवृत्त हो गए होंगे। राजा ने उनकी सेवाओं का ध्यान करके उन्हें शानदार विदाई दी होगी। उनको पर्याप्त मान-सम्मान भी मिला होगा। फिर राज्य के कार्य सुचारू रूप से चलने शुरू हो गए होंगे।
आपकी बात
(क) यदि कहानी में दीवान साहब के स्थान पर आप होते तो योग्य व्यक्ति को कैसे चुनते ?
उत्तर:
यदि कहानी में दीवान साहब के स्थान पर हम होते तो हम योग्य व्यक्ति का चुनाव साक्षात्कार लेकर करते। हम एक सलाहकार समिति का गठन करते, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोगों को शामिल करते। सभी मिलकर योग्य व्यक्ति को चुनते।
(ख) यदि आपको कक्षा का मॉनिटर चुनने के लिए कहा जाए तो आप उसे कैसे चुनेंगे? उसमें किन-किन गुणों को देखेंगे? गुणों की परख के लिए क्या-क्या करेंगे?
उत्तर:
कक्षा का मॉनीटर चुनने के लिए हम उस विद्यार्थी के प्रबंधन कौशल, अनुशासन पालन तथा वाकपटुता आदि गुणों की परख करेंगे। उसके व्यवहार को देखेंगे। उसकी सहयोग करने की भावना का मूल्यांकन करेंगे।
नया-पुराना
“कोई नए फैशन का प्रेमी, कोई पुरानी सादगी पर मिटा हुआ । ”
हमारे आस-पास अनेक वस्तुएँ ऐसी हैं जिन्हें लोग नया फैशन या पुराना चलन कहकर दो भागों में बाँट देते हैं। जो वस्तु आपके माता-पिता या दादा-दादी के लिए नई हो, हो सकता है वह आपके लिए पुरानी हो, या जो उनके लिए पुरानी हो, वह आपके लिए नई हो। अपने परिवार या परिजनों से चर्चा करके नीचे दी गई तालिका को पूरा कीजिए-
मेरे लिए नई वस्तुएँ | मेरे लिए पुरानी वस्तुएँ | परिवार के बड़ों के लिए नई वस्तुएँ | परिवार के बड़ों के लिए पुरानी वस्तुएँ |
उत्तर:
मेरे लिए नई वस्तुएँ | मेरे लिए पुरानी वस्तुएँ | परिवार के बड़ों के लिए नई वस्तुएँ | परिवार के बड़ों के लिए पुरानी वस्तुएँ |
कम्प्यूटर | टी.वी. | ए.सी. | कूलर |
इंटरनेट | रेडियो | हीटर | अंगीठी |
मोबाइल फोन | घडी | बड़े स्क्रीन वाला टी. वी. | पुराना टी.वी. |
वाद-विवाद
“ आपस में हॉकी का खेल हो जाए। यह भी तो आखिर एक विद्या है। ”
क्या हॉकी जैसा खेल भी विद्या है? इस विषय पर कक्षा में एक वाद-विवाद गतिविधि का आयोजन कीजिए। इसे आयोजित करने के लिए कुछ सुझाव आगे दिए गए हैं-
- कक्षा में पहले कुछ समूह बनाएँ। फिर पर्ची निकालकर निर्धारित कर लीजिए कि कौन समूह पक्ष में बोलेंगे, कौन विपक्ष में।
- आधे समूह इसके पक्ष में तर्क दीजिए, आधे समूह इसके विपक्ष में।
- सभी समूहों को बोलने के लिए 5-5 मिनट का समय दिया जाएगा।
- ध्यान रखें कि प्रत्येक समूह का प्रत्येक सदस्य चर्चा करने तर्क देने आदि कार्यों में भाग अवश्य लें।
उत्तर:
विद्यार्थी बाल सभा में इस वाद-विवाद प्रतियोगिता का निर्देशानुसार आयोजन करेंगे।
अच्छाई और दिखावा
“हर एक मनुष्य अपने जीवन को अपनी बुद्धि के अनुसार अच्छे रूप में दिखाने की कोशिश करता था । ”
अपने समूह में निम्नलिखित पर चर्चा कीजिए और चर्चा के बिंदु अपनी लेखन पुस्तिका में लिख लीजिए-
(क) हर व्यक्ति अपनी बुद्धि के अनुसार स्वयं को अच्छा दिखाने की कोशिश करता है। स्वयं को अच्छा दिखाने के लिए लोग क्या-क्या करते हैं? (संकेत मेहनत करना, कसरत करना, साफ-सुथरे रहना आदि )
उत्तर:
स्वयं को अच्छा दिखाने के लिए लोग निम्नलिखित काम करते हैं :
- साफ-सुथरे दिखते हैं।
- स्वयं को ईश्वर भक्त दिखाते हैं।
- स्वयं को गरीबों की सहायता करने वाले दिखाते हैं।
- स्वयं को मेहनती और ईमानदार दिखाते हैं।
- स्वयं को सदा सच बोलने वाला बताते हैं।
- स्वयं को समय का पाबंद बताते हैं।
(ख) क्या ‘स्वयं को अच्छा दिखाने में और ‘स्वयं के अच्छा होने में कोई अंतर है? कैसे?
उत्तर:
स्वयं को अच्छा दिखाना एक ढोंग है। ऐसा व्यक्ति वास्तव में अच्छा नहीं होता बल्कि ऐसा दिखाता है।
अच्छा होना एक सकारात्मक पहलू है। व्यक्ति का अच्छा होना ही चाहिए भले ही बाहर से अन्य लोगों को ऐसा न लगे।
दोनों स्थितियों में अंतर है।
परिधान तरह-तरह के
“कोट उतार डाला ”
‘कोट’ एक परिधान का नाम है। कुछ अन्य परिधानों के नाम और चित्र नीचे दिए गए हैं। परिधानों के नामों को इनके सही चित्र के साथ मिलाइए। इन्हें आपके घर में क्या कहते हैं? लिखिए-
उत्तर:
आपकी परीक्षाएँ
हम सभी अपने जीवन में अनेक प्रकार की परीक्षाएँ लेते और देते हैं। आप अपने अनुभवों के आधार पर कुछ परीक्षाओं के उदाहरण बताइए। यह भी बताइए कि किसने, कब, कैसे और क्यों वह परीक्षा ली। (संकेत-जैसे, किसी को विश्वास दिलाने के लिए उसके सामने साइकिल चलाकर दिखाना, स्कूल या घर पर कोई परीक्षा देना, किसी को किसी काम की चुनौती देना आदि ।)
उत्तर:
परीक्षा देने के अवसर:
- मैंने एक बार अपनी सत्यता की परीक्षा दी। कक्षा में अध्यापक ने एक चोरी के केस में मुझे झूठा बताया था, पर सामान किसी और के पास निकला।
- मैंने पिताजी को विश्वास दिलाया था कि मैं कक्षा में फर्स्ट आऊँगा। मैंने कड़ी मेहनत करके प्रथम स्थान पाया और मैं परीक्षा में सफल हुआ।
- मैं तैरना जानता हूँ। इसकी परीक्षा देने के लिए गाँव के तालाब को पार करके दिखा दिया।
परीक्षा लेना : मैंने अपने मित्र की परीक्षा लेने के लिए उससे पाँच सौ रूपए माँगे तो उसने बहाना बनाकर मनाकर दिया । वह परीक्षा में फेल हो गया।
आज की पहेली
आज आपकी एक रोचक परीक्षा है। यहाँ दिए गए चित्र एक जैसे हैं या भिन्न? इन चित्रों में कुछ अंतर हैं। देखते हैं आप कितने अंतर कितनी जल्दी खोज पाते हैं।
उत्तर:
- पहले चित्र में बकरी का मुँह दाईं ओर है दूसरे चित्र में बकरी का मुँह बाईं ओर है।
- पहले चित्र में दाईं ओर एक पेड़ है, दूसरे चित्र में यह पेड़ नहीं है।
- पहले चित्र में ऊपर वाले आदमी के हाथ में थैला है, दूसरे चित्र में आदमी के हाथ में बैग है।
- पहले चित्र में बाईं ओर एक पेड़ है तो दूसरे चित्र में दो पेड़ हैं।
- पहले चित्र के घर में खिड़की है तो दूसरे चित्र में यह खिड़की नहीं है।
झरोखे से
पाठ में दिए गए क्यू आर कोड के माध्यम से आप एक और कहानी पढ़ेंगे। इस कहानी में भी कोई किसी की परीक्षा ले रहा है। यह कहानी हमारे देश के बहुत होनहार बालक और उसके गुरु चाणक्य के बारे में है। इसे हिंदी के प्रसिद्ध लेखक जयशंकर प्रसाद ने लिखा है।
उत्तर:
विद्यार्थी क्यू आर कोड के माध्यम से इस कहानी को निकालकर पढ़ें।
खोजबीन के लिए
पुस्तक में दिए गए क्यू आर कोड की सहायता से आप प्रेमचंद के बारे में और जान-समझ सकते हैं, साथ ही उनकी अन्य कहानियों का आनंद भी उठा सकते हैं-
- ईदगाह
- नादान दोस्त
- दो बैलों की कथा
उत्तर:
प्रेमचंद की अन्य कहानियाँ ये हैं
- कजाकी
- मंत्र
- नमक का दारोगा । इनमें से एक कहानी ‘दो बैलों की कथा’ हम दे रहे हैं, शेष विद्यार्थी क्यू आर कोड से निकाल ले।
दो बैलों की कथा
(1)
झूरी काका के दो बैल थे हीरा और मोती दोनों पछाई जाति के मजबूत डील-डौल वाले बैल थे। देखने में सुंदर तो थे ही काम में भी चौकस बहुत दिनों तक साथ रहते-रहते दोनों बैलों में भाईचारा हो गया था। वे दोनों कभी आमने-सामने या फिर आस-पास बैठकर एक दूसरे से मूक भाषा में अपने दुख-सुख की बातें करते थे।
वे दोनों एक-दूसरे के मन की बातों को समझ भी जाते थे। पर कैसे? इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति अवश्य थी। ऐसी शक्ति जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। वे दोनों एक दूसरे को कभी चाटकर तो कभी सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे। कभी-कभी दोनों आपस में सींग भी उलझा लिया करते थे।
मनमुटाव के नाते नहीं, बल्कि विनोद या फिर आत्मीयता के भाव से जैसे मौका मिलते ही दोनों दोस्तों में धौल धप्पा होने लगता था मानो इसके बिना उनकी दोस्ती कुछ फुसफुसी या कुछ हल्की सी रहती हो। संभवतः उनकी इस बात पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता कि जब ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते तो गरदन हिला-हिलाकर उनकी यही चेष्टा होती कि ज्यादा से ज्यादा बोझ मेरी गरदन पर पड़े। दिन भर के बाद दोपहर या शाम को जब भी दोनों खुलते तो दोनों एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटाते थे। उनका मालिक जब नींद में खली या भूसा डाल देता तो दोनों साथ ही उठते, नाँद में मुँह डालते थे। यदि एक अपना मुँह हटा लेता, तो दूसरा भी उसकी देखा-देखी मुँह हटा लेता था ।
संयोगवश झूरी ने एक बार दोनों को अपने ससुराल भेज दिया। बैलों को पता न लगा कि उन्हें झूरी ने वहाँ क्यों भेजा है। उन्होंने समझा कि मालिक ने उन्हें बेच दिया है। उन्हें अपना यों बेचा जाना बिलकुल भी अच्छा न लगा। झूरी के साले बेचारे गया को उन दोनों को अपने घर तक ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। वह उन्हें पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागने लगते थे। पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो पीछे की ओर जोर लगाते ।
यदि गया उन्हें मारता तो दोनों सींग उसकी ओर तानकर हुंकारने लगते थे। अगर भगवान ने उन्हें वाणी दी होती, तो वे दोनों झूरी से पूछते कि उन गरीबों को घर से क्यों निकाला जा रहा है? दोनों ने अपने मालिक की सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। यदि फिर भी इतनी मेहतन से काम न चलता था तो और काम ले लेते पर मालिक की ही चाकरी में मर जाना दोनों को कबूल था। न तो उन्होंने कभी दाने चारे की ही शिकायत की, जो कुछ खिलाया, सिर झुकाकर खा लिया। फिर क्यों दोनों को जालिम के हाथों बेच दिया?
शाम के समय जब दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे तो दिन भर के भूखे थे, लेकिन फिर भी नाँद में लगाए जाने पर एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दोनों का यह सोचकर दिल भारी हो गया कि जिस घर को उन्होंने अपना घर समझा था, वह उनसे छूट गया था। यहाँ आकर उन्हें नया घर, नया गाँव, नए आदमी, सभी बेगाने से लग रहे थे।
आखिर दोनों ने अपनी मूक भाषा में सलाह मिलाई और एक-दूसरे को कनखियों से देखा। दोनों आराम से वहीं लेट गए। जब सभी गाँव वाले सो गए तो दोनों ने जोर मारकर अपनी-अपनी रस्सी तुड़ा ली और तेजी से घर की ओर भाग चले। हालाँकि रस्सियाँ बहुत मजबूत थीं। कोई और बैल तो उन्हें तोड़ न सकता; पर इन दोनों ने अपने घर की याद आते ही दूनी शक्ति से एक झटके में रस्सियाँ तुड़ा लीं।
झूरी सुबह सोकर उठा तो उसने अपने दोनों बैलों को चरनी पर खड़े पाया। दोनों के गले में आधी-आधी रस्सी लटक रही थी । उनके घुटने तक पाँव कीचड़ से सने हुए थे और दोनों की आँखों में अपने मालिक के प्रति स्नेह टपक रहा था।
झूरी भी अपने बैलों को देखकर गद्गद हो उठा और दौड़कर उन्हें गले से लगा लिया। मालिक सेवक का प्रेमालिंगन और परस्पर चुंबन का वह दृश्य बस देखते ही बनता था।
बैलों को वापस घर आया देख घर और गाँव के लड़के इकट्ठे हो गए और तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत करने लगे। यह घटना गाँव के इतिहास में अभूत पूर्व न होकर भी बड़ी ही महत्त्वपूर्ण थी। गाँव की बाल सभा ने दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन-पत्र देने का निश्चय किया ।
तुरंत उन बच्चों में से कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, तो कोई चोकर, या कोई भूसी लेकर वहाँ पहुँचा । दोनों बैलों की प्रशंसा में एक बालक बोला कि ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।
तभी दूसरे ने भी समर्थन करते हुए कहा, “इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए। ” तीसरा बोला, “ये बैल नहीं, पिछले जनम के आदमी हैं। ”
तीसरे बालक की बात को काटने का किसी का साहस न हुआ।
उधर, झूरी की पत्नी बैलों को अपने द्वार पर वापस लौटा देखकर जल उठी बोली, “कैसे नमकहराम बैल हैं। एक दिन भी वहाँ काम न करके मुँह मोड़कर भाग खड़े हुए। ”
झूरी अपने बैलों पर लगाए गए आक्षेप न सुन सका। “नमकहराम क्यों हैं? चारा- दाना नहीं दिया होगा, तो क्या करते ? इसलिए भाग आए होंगे। ”
पत्नी भी रोब से बोली, “बस! तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और कोई नहीं बाकी तो इन्हें पानी पिलाते होंगे, हैं ना ”
झूरी भी कुछ चिढ़ते हुए बोला, “चारा मिलता तो क्यों भागते ? बोलो। ”
झूरी की पत्नी और चिढ़ते हुए बोली, “इसलिए कि वे लोग तुम जैसे बुद्धओं की तरह बैलों को सहलाते नहीं । खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों तो ठहरे कामचोर, काम करना पड़ता इसलिए भाग निकले। देखूँगी इन्हें कैसे खली और चोकर खाते हैं यहाँ सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूँगी इन्हें खाएँ चाहें मरें। ”
फिर तो यही होने लगा। झूरी की पत्नी ने मजूर को कड़ी ताकीद कर दी कि बैलों को खाली सूखे भूसे के अलावा और कुछ न दिया जाए।
बैलों ने नाँद में मुँह डाला तो उन्हें सब कुछ फीका-फीका सा लगा। चारे में न कोई चिकनाहट थी और न कोई रस था। अब क्या खाएँ? इसी आशा में वे भरी आँखों से द्वार की ओर ताकने लगे।
झूरी ने मंजूर से कहा, “थोड़ी खली क्यों नहीं डाल देता, बे?”
मजूर ने भी तपाक से उत्तर दिया, “मालकिन मुझे मार ही डालेंगी। ”
” अरे तो कुछ चुराकर ही डाल आ । ” झूरी झुंझलाते स्वरों में बोला ।
“न दादा ना…। तुम भी पीछे से उन्हीं की हाँ में हाँ मिलाओगे, मैं तो ना डालूँ। ”
(2)
दूसरे दिन झूरी का साला फिर से उन दोनों बैलों को लेने आ गया। अबकी बार वह दोनों को गाड़ी में जोतकर ले चला। रास्ते में चलते-चलते दो-चार बार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराने की कोशिश भी की पर, हीरा ने संभाल लिया। हीरा कुछ ज्यादा ही सहनशील था।
शाम को घर पहुँचकर गया ने दोनों बैलों को मोटी रस्सियों से बाँधकर कल की शरारत का मजा चखाया और फिर वह रूखा-सूखा भूसा उनके सामने डाल दिया। अपने दोनों बैलों को उसने खाने के लिए खली, चूरी सब कुछ डाला । दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी ने इन्हें कभी फूल की छड़ी से भी नहीं छुआ था। उसकी एक टिटकार पर ही दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ उन्हें खाने को मिली। इससे उनका आत्मसम्मान तो आहत हुआ साथ ही उस पर सूखा भूसा खाने को मिला।
दोनों आहत बैलों ने नाँद की तरफ आँखें तक न उठाकर देखा ।
दूसरे दिन जब गया ने बैलों को हल में जोता, तो दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। गया उन्हें मारते-मारते थक गया; पर उन दोनों ने पाँव तक न उठाए । उस निर्दयी गया ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती को गुस्सा आ गया। वह हल लेकर ही भाग निकला। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-फूट गए। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों कभी पकड़ाई में न आते ।
हीरा ने मोती से मूक भाषा में कहा, “ भागना व्यर्थ है ।
मोती ने उत्तर दिया, “तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी, कसाई कहीं का।’
‘अबकी बार पकड़े गए तो बड़ी मार पड़ेगी।” हीरा ने मोती को समझाया तो मोती विवशता भरे शब्दों में बोला, ” पड़ने दो, जब बैल का जन्म ले ही लिया है, तो अब मार से कहाँ तक बचेंगे?”
तभी गया भी दो आदमियों के साथ दौड़ा-दौड़ा हाथों में लाठियाँ लिए वहाँ पहुँचा ।
मोती बोला, “कहो तो दिखा दूँ इन्हें कुछ मजा मैं भी लाठी लेकर आए हैं। ”
हीरा ने मोती को समझाते हुए कहा, “नहीं, भाई ! खड़े हो जाओ।”
‘मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा!’ मोती ने अधीरता से हीरा को कहा ।
हीरा सहनशीलता दिखाते हुए फिर मोती से बोला, “नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है। ”
हीरा की बात सुनकर मोती दिल में ऐंठकर रह गया। तब तक गया भी वहाँ आ पहुँचा और दोनों को पकड़ कर ले जाने लगा । शुक्र है कि उसने इस वक्त उनसे मारपीट न की, नहीं तो मोती ने भी पलट वार करने की सोच ली थी। उन दोनों के तेवर देखकर गया और उसके सहायक समझ चुके थे कि इस वक्त टाल जाना ही उचित है।
दोनों को चुपचाप लाकर थान पर बाँध दिया गया। दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा खाने को डाल दिया गया । दोनों चुपचाप बस यूँ ही खड़े रहे। जब घर के लोग भोजन करने लगे तो उसी वक्त एक छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लिए उन दोनों के पास पहुँची और दोनों के मुँह में देकर चली गई। उस एक रोटी से उनकी भूख तो शांत नहीं होती, पर दोनों उस एक रोटी से ही तृप्त हो गए। उन्हें लगा मानो भोजन मिल गया हो। उन्हें अनुभव हुआ कि यहाँ भी किसी सज्जन का वास तो है। भैरों की थी और उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ की मार खा-खाकर इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई।
दोनों को दिन भर जोता जाता था। डंडे भी खाने पड़ते, तो वे अड़ते भी थे और फिर से उन्हें शाम को थान पर बाँध दिया जाता। रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती ।
इस बच्ची द्वारा प्रेम से दिए गए प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल थे। मगर, दोनों की आँखों में उनके रोम रोम में विद्रोह की भावना भरी हुई थी।
एक दिन मोती ने मूक भाषा में हीरा से मन की भड़ास निकाल ही दी, कहा, अब तो नहीं सहा जाता, हीरा ! ”
‘क्या करना चाहते हो?” हीरा ने मोती से जानना चाहा ।
” एकाध को सींगों पर उठाकर पटक दूँगा।” – लगता था मोती का धैर्य जवाब दे चुका था ।
” लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियाँ खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है।
यह बेचारी अनाथ न हो जाएगी?” हीरा ने बच्ची के प्रति आत्मीयता दिखाते हुए कहा ।
” तो मालकिन को न फेंक दूँ। वही तो उस लड़की को मारती है।” मोती झुंझलाहट भरे स्वरों में बोला ।
‘अरे! लेकिन, औरत जात पर सींग चलाना मना है, तुम यह क्यों भूल जाते हो?”
“तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। बताओ तुड़ाकर भाग चलें।” मोती ने विरोध प्रकट करते हुए कहा ।
“हाँ, यह मैं स्वीकार करता हूँ, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे? यह तो बताओ।”
‘इसका एक उपाय है। पहले रस्सी को थोड़ा-सा चबा लो। फिर एक झटके में टूट जाएगी, फिर भाग निकलेंगे।” रात को बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई तो दोनों ने रस्सियाँ चबाने की कोशिश तो बहुत की पर मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते। अभी वे कुछ और उपाय सोचते कि सहसा घर का द्व र खुला और वही लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। बच्ची का स्नेह स्पर्श पाकर दोनों की पूछें खड़ी हो गई।
बच्ची ने उनका माया सहलाते हुए कहा, “खोले देती हूँ। चुपके से भाग जाओ, नहीं तो यहाँ लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि उनकी नाकों में नाथ डाल दी जाएँ। ” इतना कहकर बच्ची ने दोनों की रस्सियाँ खोल दीं, पर दोनों चुपचाप वहीं खड़े रहे।
मोती ने हीरा से अपनी भाषा में पूछा, “अब चलते क्यों नहीं ?”
हीरा ने कहा, “चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे।” तभी बालिका जोर से चिल्लाई – ” फूफावाले बैल भाग गए हैं। ओ दादा! दादा! दोनों बैल भाग गए, जल्दी दौड़ो । ”
गया यह सुनकर हड़बड़ाते हुए बाहर निकलकर आया और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों बैल भी तेजी से भागे । गया ने पीछा किया तो वे और भी तेज भागने लगे। गया शोर मचाते हुए गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल चुका था। वे बस सीधे दौड़ते चले गए। उस नए मार्ग का उन्हें ज्ञान न था। जिस मार्ग से वे आए थे, वह भूल गए। उस मार्ग में नए-नए गाँव मिलने लगे। रास्ता भूल जाने पर वे दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, ” अब क्या करना चाहिए ?”
हीरा ने मूल महसूस करते हुए कहा, “मालूम होता है हम दोनों राह भूल गए हैं, शायद ।
” तुम भी तो बेतहाशा भागे जा रहे थे। अरे वहीं मार गिराना था, उसे।”
हीरा बोला, “क्या कहते हो? उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती ? यदि वह अपना धर्म छोड़ दे तो क्या हम भी अपना धर्म छोड़ दें?”
दोनों भूख से व्याकुल तो हो ही रहे थे। खेत में हरी-भरी मटर खड़ी थी। भूख की अधिकता में लोभ का संवरण न कर सके, सो चरने लगे। रह-रहकर आहट भी ले लेते थे, कहीं कोई आ तो नहीं रहा है।
दोनों का जब पेट भर गया तो दोनों को अपनी आजादी का अनुभव हुआ। बस वहीं मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले जोर से डकार ली, फिर सींग से सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेलने लगे। मोती हीरा को कई कदम तक पीछे धकेलता ले गया। यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे क्रोध आया। वह संभलकर उठा और मोती से भिड़ गया। मोती ने खेल खेल में झगड़ा होते देखा तो चुपचाप किनारे हट गया।
(3)
तभी दोनों ने देखा कि सामने से कोई सॉड डोंकता चला आ रहा है। हाँ, जब वह साँड़ उनके सामने आ पहुँचा तो दोनों मित्र अपनी-अपनी बगलें झाँकने लगे। साँड क्या पूरा हाथी था । उससे भिड़ जाने का मतलब जान से हाथ धोना था। न भिड़ने पर भी उन्हें अपनी जान बचती नजर नहीं आती थी। सांड इन्हीं की तरफ आ रहा था। बड़ी भयंकर सूरत थी उसकी।
मोती मूक भाषा में बुदबुदाया, “बुरे फँसे जान बचेगी या नहीं। फिर भी कोई उपाय तो सोचो। ”
हीरा ने चिंतित स्वर में कहा, ” अपने घमंड में भूला पड़ा है और आरजू विनती का भी इस पर कोई असर न होगा। ”
“तो भाग चलें ?’
“नहीं, भागना तो कायरता होगी। ”
” तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ दो ग्यारह हुआ समझो। ”
“और जो दौड़ाए?”
“तो फिर कोई उपाय सोचो ना जल्दी । ”
‘भाई उपाय यही है कि दोनों जने मिलकर एक साथ चोट करें उस पर मैं उसे आगे से खदेड़ता हूँ, तुम पीछे से खदेड़ो । दोहरी मार पड़ेगी, तो घबराकर भाग खड़ा होगा। अगर मेरी ओर झपटे तो तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना है तो कार्य जान जोखिम का पर दूसरा उपाय भी तो नहीं है। ”
सांड की ओर दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। उधर साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुरबा न था। उसे तो एक शत्रु से ही मल्लयुद्ध करना आता था। वह ज्यों ही हीरा पर झपटा तो मोती ने पीछे से उसे दौड़ाया। साँड, मोती की ओर मुड़ा, तो हीरा ने उसे खदेड़ दिया। साँड ने तो सोचा यूँ था कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले; ‘पर ये दोनों भी उस्ताद निकले। वे उसे ऐसा अवसर न देते थे।
एक बार साँड झल्लाकर हीरा का अंत करने के लिए टूट पड़ा तो तभी मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिए । साँड क्रोध में आकर पीछे घूमा तो हीरा ने उसके दूसरे पहलू में सींग चुभा दिए। आखिर बेचारा सांड बुरी तरह जख्मी होकर भागा। दोनों मित्रों ने दूर तक उसका ऐसा पीछा किया कि साँड बेदम होकर जमीन पर गिर पड़ा। तब जाकर दोनों ने उसका पीछा करना छोड़ा।
दोनों मित्र अपनी जीत के नशे में झूमते चले जा रहे थे।
मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा, “मेरा तो जी चाहता था कि उस साँड को जान से मार ही डालूँ। ”
तब हीरा तिरस्कार भरे लहजे में बोला, “ गिरे हुए बेरी पर कभी सींग नहीं चलाना चाहिए। ”
‘यह सब ढोंग है। बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।” मोती आक्रामक तेवर दिखाते हुए बोला ।
” अब घर कैसे पहुँचेंगे, इस बारे में सोचो। ”
” पहले कुछ खा तो लें, फिर सोच लेंगे। ”
उनके सामने मटर का खेत तो था ही मोती तुरंत उसमें घुस गया। हीरा ने उसे मना भी किया, पर उसने उसकी एक न सुनी। अभी उसने दो-चार ही ग्रास खाए होंगे कि दो आदमियों ने लाठियाँ लिए दोनों मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर ही था, निकल गया। लेकिन मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने के कारण भाग न सका और पकड़ लिया गया। हीरा ने मोती को अकेले संकट में फंसे देखा तो वह भी लौट पड़ा। उसने यही सोचा कि फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।
सुबह दोनों मित्रों को कांजीहौस में बंद कर दिया गया।
(4)
दोनों मित्रों का यह जीवन में पहली बार ऐसा मौका था कि सारा दिन बीत जाने पर भी उन्हें खाने के लिए एक तिनका भी न मिला था। उन्हें समझ ही नहीं आता था कि यह कैसा स्वामी है, इससे तो गया ही अच्छा था। कम से कम रूखा-सूखा तो देता ही था। यहाँ कई भैंस और भी थी। कई बकरियाँ, कई घोड़े कई गधे पर किसी के सामने चारा न था। सभी जमीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। उनमें कई तो इतने कमजोर हो गए थे कि खड़े भी नहीं हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक पर टकटकी लगाए ताकते रहे पर कोई चारा लेकर नहीं आया। थक-हार कर दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की। पर इससे उन्हें क्या तृप्ति मिलती ।
रात को भी जब खाने को न मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की आग दहक उठी। वह मोती से बोला, ” अब और नहीं सहा जाता मोती । ”
मोती ने सिर लटका कर मरे शब्दों में जवाब दिया, “मालूम होता है, प्राण निकल जाएँगे । ”
” इतनी जल्दी हिम्मत मत हारो मोती भाई! यहाँ से भागने का कोई न कोई उपाय निकालना ही होगा । ”
“तो आओ, यह दीवार तोड़ डालें। ”
“मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।” मोती ने हिम्मत हारते हुए कहा ।
“बस इसी बूते पर अकड़ते थे!” हीरा ने उपहास किया तो मोती ने भी हाँ भरते हुए कहा,
” सारी अकड़ निकल गई। ”
बाड़े की दीवार कच्ची थी और हीरा मजबूत बस, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए । जोर मारा, तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस और बढ़ गया। उसने दौड़-दौड़कर दीवार पर ऐसी चोटें मारी कि हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिरने लगी।
तभी वहाँ कांजीहौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजिरी लेने आ पहुँचा। टूटी दीवार और हीरा का उजड्डपन देखकर उसने उसे कई डंडे रसीद किए। फिर हीरा को एक मोटी सी रस्सी से बाँध कर लौट गया।
मोती ने पड़े पड़े ही हीरा से कहा, “आखिर मार खाई, क्या मिला, तुम्हें। ”
“भई अपने बूते भर का जोर तो मार ही दिया था। ”
“ऐसा जोर मारना किस काम आया कि और बंधन में पड़ गए। ”
हीरा ने भी हेंठी से कहा, “जोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बंधनों में क्यों न कसना पड़े। ”
“अगर जान से हाथ धोना पड़ा, तब ? ”
“कुछ परवाह नहीं। यों तो एक दिन मरना ही है। सोचो, अगर टूट जाती तो कितनी जानें बच जातीं। देखो, कितने भाई यहाँ बंद हैं। किसी की भी देह में जान नहीं बची है। दो चार दिन और यही हाल रहा तो ये सभी मर जाएँगे। ” मोती ने भी हीरा की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, “अच्छा, तो लाओ, फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।” इतना कहकर मोती ने भी दीवार में वही सींग मारा। चोट मारते ही मिट्टी गिरते देख मोती की और हिम्मत बढ़ी।
फिर तो वह दीवार से सींग लगाकर किसी प्रतिद्वंदी की तरह भिड़ गया। आखिर लगभग दो घंटे की जोर आजमाईश के बाद उसने दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिरा दी। उसने दूनी शक्ति लगाई तो दूसरे धक्के में ही आधी दीवार गिर पड़ी।
दीवार को गिरता देख वहाँ अधमरे से पड़े सभी जानवर भी उठ खड़े हुए। तीनों घोड़ियाँ तेजी से भाग निकलीं, फिर बकरियाँ। इसके बाद भैंसें भी वहाँ से खिसक गई, पर गधे ज्यों के त्यों वहाँ अब भी खड़े थे।
उन्हें वहाँ खड़ा देख हीरा ने उनसे पूछा, “तुम क्यों नहीं भाग जाते ? ”
एक गधे ने उत्तर दिया, “अगर फिर पकड़ लिए गए तो?”
हीरा ने उसे समझाते हुए कहा, “तो क्या हरज है। अभी तो भागने का अवसर है, भागो। ”
तब गधे ने डरते हुए कहा कि भई हमें तो डर लगता है इसलिए हम नहीं भागेंगे।
आधी रात बीत चुकी थी। दोनों गधे वहीं खड़े-खड़े सोचते रहे थे कि भागें या न भागें मोती हीरा की रस्सी तोड़ने में लग गया। जब वह रस्सी तोड़ते तोड़ते थक गया मगर रस्सी न टूटी तो हीरा ने उससे कहा, “तुम भाग जाओ। मुझे यहीं पड़ा रहने दो। भगवान ने चाहा तो शायद कहीं फिर भेंट हो जाए ।”
स्वयं को रस्सी तोड़ने में असफल होता देख मोती ने आँखों में आँसू भरकर हीरा से कहा, “तुम मुझे इतना स्वार्थी न समझो, हीरा। हम और तुम इतने दिनों तक साथ रहे हैं। तुम्हें विपत्ति में अकेला छोड़कर तुमसे अलग न होऊँगा।” हीरा ने मोती को फिर समझाया कि बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जाएँगे कि यह तुम्हारी ही शरारत है, तुम्हीं ने दीवार तोड़ी है।
मोती ने गर्व से कहा, “ जिस अपराध के लिए तुम्हें बंधना पड़ा, अगर उसके लिए मुझे मार पड़े तो भी क्या चिंता । इतना तो सोचो हमारी वजह से नौ दस प्राणियों की तो जान बची। वे सब तो आशीर्वाद देंगे। ”
यह कहते हुए मोती ने अपने दोनों सींगों से गधों को मार मारकर बाड़े से बाहर भगा दिया। और फिर वापस अपने बंधु के पास आकर सो गया।
भोर होते ही मुंशी और चौकीदार और अन्य कर्मचारियों में खलबली मच गई। उन्होंने मोती की खूब मरम्मत की और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया।
(5)
एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने भी घास का एक तिनका तक खाने के लिए न डाला। हाँ, एक आध बार पानी जरूर दिया जाता था। पानी पी पीकर ही उनके दिन कट रहे थे। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उनसे उठा तक न जाता था। उनकी हड़ियाँ तक निकल आई थीं।
एक दिन दोनों ने सुना कि बाड़े के सामने डुग्गी बज रही थी। दोपहर होते-होते यहाँ पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्रों को बाड़े से बाहर निकाला गया और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का भला कौन खरीददार होता?
तभी एक दढ़ियल आदमी उनके पास आया। उसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा भी अत्यंत कठोर दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से कुछ बातें करने लगा। उसका कठोर क्रूर चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों ने भांप लिया कि आखिर वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है। उसके कसाई होने में उन्हें कोई संदेह न हुआ । दोनों ने एक दूसरे को भयभीत होकर देखा और अपने-अपने सिर झुका लिए।
हीरा मोती से बोला, “ गया के घर से यूं ही भागे। लगता है अ जान न बच पाएगी। ”
मोती भी कुछ अश्रद्धा के से भाव में बोला, “कहते हैं कि भगवान सबके ऊपर दया करते हैं। उन्हें हमारे ऊपर क्यों दया नहीं आई?”
हीरा बोला कि – ” भगवान के लिए तो मरना जीना दोनों समान है। चलो अच्छा ही हुआ, कुछ दिन उसके पास रहने का तो अवसर मिलेगा। वैसे भी याद करो एक बार भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया तो क्या अब फिर न बचाऐंगे?”
मोती घिघियाते स्वर में बोला, “यह आदमी हम पर जरूर छुरी चलाएगा। देख लेना। ”
हीरा ने दृढ़ता से कहा, “तो भी क्या चिंता है? हमारा मांस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी न किसी के काम तो आएँगे ही ना!”
दोनों की नीलामी के बाद वह दढ़ियल दोनों को अपने साथ ले चला। उसके साथ चलते-चलते दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी। बेचारों में पाँव तक उठाने की ताकत न थी, फिर भी भय के मारे गिरते पड़ते भागे जाते थे। जरा भी चाल धीमी हो जाने पर वह दढ़ियल उन पर जोर से डंडा जमा देता था।
राह में गाय- बैलों का एक रेवड़ हरे भरे खेत में चरता नजर आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, सभी चिकने, चपल । कोई उछलता कूदता था, तो कोई आनंद से बैठा जुगाली कर रहा था। कितना सुखी जीवन जी रहे हैं ये सभी पर स्वार्थी हैं सभी उनमें से किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई बधिक के शिकंजे में फंसे दुखी हैं। दढ़ियल के साथ जिस राह पर वे चले जा रहे थे तभी सहसा उन्हें ऐसा लगा कि यह परिचित राह है।
उन्हें याद हो आया कि इसी रास्ते से तो गया उन्हें अपने गाँव ले गया था। बिलकुल वही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। उनकी जान में जान आई और उनकी चाल तेज होने लगी। उनकी सारी थकान सारी दुर्बलता न जाने कहाँ गायब हो गई। ओह! यह तो अपना ही हार आ गया। अरे इसी कुएँ पर तो हम पुर चलाते थे।
मोती ने हीरा से कहा, “हमारा घर समीप आ गया है।”
हीरा भी भगवान को धन्यवाद देते हुए बोला, “भगवान की ही दया है, यह सब । ‘
मोती ने कहा, “मैं तो अब सीधे घ्ज्ञर की ओर भागता हूँ। ”
हीरा ने सवाल किया, “यह जाने देगा क्या?”
मोती दृढ़ता से बोला, “इसे मैं अभी मार गिराता हूँ; देखो। ”
“नहीं नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहाँ से हम आगे न जाएँगे।” हीरा ने सुझाया।
बस फिर क्या था, दोनों उन्मत होकर नवजात बछड़ों की तरह कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह देखो, वही हमारा थान है। दोनों बैल दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। उनके पीछे-पीछे दढ़ियल भी दौड़ा चला
आया।
उसी समय झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। अपने बैलों को आता देख उनकी ओर दौड़ा और उन्हें अपने गले लगा लिया। अपने मालिक का आलिंगन सुख पाकर दोनों मित्रों की आँखों में आनंद के आँसू आ गए। एक झूरी का हाथ चाटता तो दूसरा गाल ।
जब दढ़ियल ने आकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ीं तो झूरी बोला कि – “मेरे बैल हैं, तुम क्यों पकड़ते हो?” दढ़ियल गुस्से में बोला, “तुम्हारे बैल? अरे मैं तो मवेशीखाने से नीलामी में खरीद कर लाया हूँ। ”
झूरी भी कड़े शब्दों में बोला, “मैं तो समझा चुरा कर लाए हो! चुपके से भाग जाओ। मेरे बैल हैं। जब मैं बेचूँगा तभी बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का अधिकार नहीं है। ”
दढ़ियल ने भी अड़ते हुए कहा, “जाकर थाने में रपट कर दूँगा। क्या समझा है मुझे?”
झरी बोला, “देखते नहीं, मेरे बैल हैं। इसका सबूत देख रहे हो ना मेरे द्वार पर आकर खड़े हुए हैं। ”
दढ़ियल झल्लाकर ज्योंही बैलों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाने के लिए आगे बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चला दिए। दढ़ियल डरकर पीछे हटा तो मोती ने उसका पीछा किया। दढ़ियल अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा तो मोती भी उसके पीछे-पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रूककर वहीं खड़ा दढ़ियल का रास्ता देख रहा था। दड़ियल दूर खड़ा खड़ा झूरी को धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था और पत्थर फेंक- फेंक कर अपना गुस्सा उतार रहा था। उधर मोती भी ही विजयी शूर की भाँति उसके रास्ते में अड़ा खड़ा था। गाँव के लोगों ने यह तमाशा देखा तो हँसने लगे।
आखिर जब दढ़ियल थक-हारकर खाली हाथ वापस लौट गया, तो मोती अकड़ता हुआ अपने थान की ओर लौटा। हीरा ने कहा, “मैं तो डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर उसे मार न बैठो। ”
‘अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं उसे बे-मारे थोड़े ही छोड़ देता । ”
हीरा, ‘अब न आएगा, वह दढ़ियल बुरी तरह डर गया है, अब तो । ”
‘आएगा तो दूर से ही खबर लूँगा। देखता हूँ कैसे ले जाता है वह हमें ? ” मोती ने शूरवीर की तरह कहा ।
‘अगर वह गोली मरवा दे तो?” हीरा ने संदेह मिटाने के उद्देश्य से पूछा तो प्रत्युत्तर में मोती ने पर उसके काम कतई न आऊँगा । ”
हीरा ने अपनी विवशता दर्शाते हुए कहा, “हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता। ”
” इसीलिए कि हम इतने सीधे हैं।” मोती ने अपना तर्क रखा।
झूरी ने दोनों के लौटने पर थोड़ी देर में नांद में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया। दोनों मित्र निश्चित होकर खाने लगे। झूरी खड़ा खड़ा दोनों को प्यार से सहला रहा था। कई दिनों से बिछड़े झूरी और बैलों के प्यार भरे मिलन को बीसों लड़के तमाशे की तरह देख रहे थे।
सारे गाँव में इस घटना से उत्साह छाया दिखाई देता था।
उसी समय झूरी की पत्नी ने भी वहाँ आकर अपने दोनों बैलों के माये चूम लिए ।
पत्नी को भी उन पर गर्व हो चला था।
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